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प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ ७.३४ एकोहकद्वीपस्याकारादिनिरूपणम् ५२५ प्पगारा' बहुप्रकाराः एकै कस्मिन् विधौ अवान्तरानेकभेदसद्भावादिति । 'त हेव ते भिगंगया वि दुमगणा' तथैव ते भृताङ्गा अपि द्रुमगणाः 'अणेग बहुविविहीससा परिणयाए' अनेक बहुविविधमकारेण विसापरिणतेन-स्वभानत एव परिणतेन वित्रसापरिणामेनानेकाकारतया परिणतेन न तु केनचित्तथा संपादिता इति । 'भायणविधीए उववेया' भाजनविधिनोप पेता:-युक्ताः, 'फलेहिं पुण्णा विसट्टति' फलैः पूर्णा दलन्ति-दिकसन्ति 'कुसक्कुिस जाव चिट्ठति' कुशवकुश विशुद्ध क्षमूळा: मूलकन्दादि मन्तो यावत् प्रासादनीया अभिरूपाः प्रतिरूपास्तिष्ठन्तीति २ । के चित्रों की रचना की गई होती है भाजन विधि अनेक प्रकार की होती है-अर्थात् भाजन अनेक प्रकार के होते है क्योंकि इनके अवान्तर भेदों की गिनती नही है-इसलिये 'मिगंगया विदुमगया तहेव' ये जो भृताङ्ग जाति के कल्पवृक्ष है वे भी एक प्रकार के न हो कर अनेक प्रकार के ही होते है। तभी तो ये भिन्न २, जाति के रूप में परिणत होते रहते है । 'अणेग बहु विविस्वीसला परिणाए' इनका जो इस प्रकार से विविध पात्रों के देने रूप परिणाम है रखा भाविक है किसी के द्वारा किया गया नहीं होगा 'मायणविहीर उक्वेया' इस तरह भाजन प्रदान करने की विधि से युक्त हए ये भृत्ताङ्ग जाति के कल्पवृक्ष 'फलेहिं पुण्णा विरूदृति' फलों से भरे हुए विकसित होते रहते हैं और बिन २, प्रकार के पात्रों को प्रदान करते रहते हैं। 'कुस विकुस जाब चिट्टलि' इनकी भी नीचे की जमीन पर ऋश आदि नही होते है ये प्रशस्त मूल आदि विशेषणों वाले होते है ॥२॥ હેય છે. ભાજન વિધિ અનેક પ્રકારની હેય છે. અર્થાત અનેક પ્રકારના ભાજન વાંસ હોય છે. કેમકે તેના અવાર ભેદોની ગણત્રી થઈ શકે તેમ નથી તેથી 'भिंगगया वि दमगया तहेव' २ मा मृतांस तीन ४८५ वृi छे, ते ५५ એક પ્રકારના ને હેઈ અનેક પ્રકારના જ હોય છે. ત્યારે જ તેઓ જૂદી જુદી
तन पात्रोना ३५मा पारित थता र छ. 'अणेगबहु विविहवीससा परिणयाए, मा प्रभारी विqध पात्रान मायका ३५ मा २ परिणाम छ, ते स्वाभावि:०४ छे. ना २ ४२वामां माता नथी. 'भायणविहींए उववेया' આ રીતે ભજન પ્રદાન કરવાની વિધિથી યુક્ત એવા આ ભૂતાંગ જાતિના ४६५ वृA 'फलेहिं पुण्णा विसति' माथी मान विसित थता २४ छे. मन । भू ५२ना पात्र माया ४२ छे. 'कुविकुस जाव चिदंति' તેની નીચેની જમીન પર પણ કુશ વિગેરે હોતા નથી. અને તે બધા પ્રશસ્ત મૂળ વિગેરે વિશેષવાળા હોય છે, જે ૨ |