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________________ ५१६ जीवामिगमसूत्रे स्पादयन्ति 'विधूपग्गसाहा' विधूताग्रशाखा: 'जेण वायविधूयमसाला' येन वातविधूता शाखाः येन वातविधूताग्रशाखाः तेन वातविधूतनेन 'एगोख्य दीवस्स बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं' एकोरुक द्वीपस्य बहुसमरमणीयं भूमिभागं 'मुकपूफ पुंजीवयार कलियं करें ति' मुक्तपुष्प पुजोपचारकलितं कुर्वन्ति वातविधूताः - वायुकम्पिताः या अग्रशावास्ताभिर्मुक्तो यः पुष्पपुञ्ज :- कुसुम समुदायः स एवोपचारः - प्रकारः तेन कलितं युक्तं कुन्ति इति । 'गोरुयदीवेणं तत्थ तत्थ बहूओ वणराईओ' पण्णत्ताओ' एकोरुकद्वीपे खल द्वीपे तत्र तत्र देशे वदन्योSनेक प्रकारका वनराजयः प्रज्ञप्ताः - कथिताः । 'ताओ णं वणराईओ किण्हाओ किन्होभासाओ जान रम्मानो' वाः खलु जनराजयः कृष्णाः कृष्णावभासाः यावत् - नीला नीलावभासाः रम्याः 'महामेहणिकुरवभृयाओ' महामेघनिकुरम्बभूता:: गुम्मा दसद्ध वण्ण कुसुमं कुसुमति' ये गुल्म पांचों वर्णों वाले कुसुमों को उत्पन्न करते हैं । 'विधूषरग लाहा - जेण वाय विधूयग्गसाला' इनकी शाखाएं अग्रभाग में पचन के झोकों से सदा हिलती रहती हैं । अतः ये 'एगोरुव दीवस बहु समरमणिजं भूमिभागं मुक्कपुष्कपुंजोदयारकलियं करेंति' एकोरुक द्वीप के बहु समरमणीय भूमि भाग को मानों पुष्प पुंजों से ही ढक रहे हैं- ऐसा प्रतीत होता है तात्पर्य ऐसा है कि गुल्मों की अग्रशाखाएं जब वायु के झकोरों से प्रकम्पित होती हैं तो उनसे अनेक पुष्प जमीन पर नीचे गिरते हैं- अतः ऐसा प्रतीत होता है कि मानो ये उस एकोरुक द्वीप के बहु समरमणीय भूमि भाग पर पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं। 'एगोरुपदीवेर्ण तत्थ २, बहु वणराईओ पण्ण'साओ' एकोहरु द्वीप में अनेक स्थानों पर अनेक प्रकार की वनराजियां भी हैं 'ताओ णं वणराईओ किपहाओ किण्हो मालाओ जाव रम्माओ मा गुमी यांचे वर्णुवाजा पुण्याने उत्पन्न अरे छे. 'विधूत्रगगसाहा जेण वाय विधूवगसाला' तेनी शाखाओ डाजीयों पवनना ओम्थी सहा हासती रहे छे. तेथी ते 'एगोरुय दीवस्त्र बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं मुकपुल्फपुर जात्रयार कलियां करेति' ३४ द्वीराना महु समरभाषीय भूमिभागने मानो चुण्याना પુોથીજ ઢાંકી દે છે. એમ જણાય છે. આ કથનનુ' તાત્પ એ છે કે શુક્ષ્માની અગ્ર શાખાએ જ્યારે પવનના ઝપાટાથી ક'પાયમાન થાય છે. ત્યારે તેમાંથી અનેકપુષ્પા જમીન પર નીચે પડે છે. તેનાથી એવું જણાય છે કે જાણે આ એકેરૂક દ્વીપના બહું સમરમણીય ભૂમિભાગ પર પુષ્પાને વરસાદ परसावी रह्या छे. 'एगोरुय दीवेण तत्थ तत्थ बहूओ वणराइओ पण्णत्ताओ' એકારૂક દ્વીપમાં અનેક સ્થાનેાપર અનેક પ્રકારની સુદર વનસ્પતિયે પણ છે. (તાઓ पण वराईओ किव्हाओ किन्हो भासाओ जाव रम्माओ महामेघनिकुर बभूयाओ'
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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