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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ १.३३ सभेद मनुष्यस्वरूपनिरूपणम् ४१३ ___ सम्प्रते-गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यप्रतिपादनार्थमाह-से कि तं' इत्यादि, 'से किं तं गमवक्कंतिय मणुस्सा' अथ के ते गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याः गर्भव्यु स्क्रान्तिकमनुष्याणां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः, भगवानाह-गम्भवक्कंतिय' इत्यादि, 'गमवक्कैतियमणुस्सा तिविहा पन्नत्ता' गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्या स्त्रिविधा त्रिपकारकाः प्रज्ञप्ता:-कथिताः, तत्र विध्यं दर्शपति-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तयथा-'कम्मभूमिगा अम्मभूमिगा अंतरदीवगा' कर्मभूमिकाः कर्मभूमिषु भरतैरवतादि पञ्चदशसु क्रमभूमिषु जायमानाः कर्मभूमिका, एवमकम (मिघुहैमवतादि त्रिशद्विधासु भोगभूमिषु जाता अकर्मभूमिकाः, अन्तरद्वीपकाः लक्षणसमुद्रमध्येऽन्तरेऽन्तरे द्वीषा इति अन्तरद्वीया, अन्तरद्वीपेषु षट्पञ्चाशत्संख्य केषु अमज्ञी मिथ्यादृष्टि अज्ञानी और सभी मंचों पर्याप्तियों से अपयाप्त होते हैं वे अन्तर्मुहूर्त की आयु में ही काल कर जाते हैं। 'सेत्तं समुच्छिम मणुस्सा' थे समूर्छिम मनुष्य है। गर्भज मनुष्यों का विवेचन-से कि तं गम्भ कतिय = णुस्मा' हे भदन्त ! गर्भज मनुष्यों के कितने भेद हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैंहे गौतम! 'गमवक्कंसियमणुस्ता तिविशा पनत्ता' गच्युटकान्तिकगर्भजमनुष्यों के लीन भेद हैं । 'तं जहा' वे भेद इस प्रकार से हैं-'चम्मभूमिगा, अकरमभूग्निगा, अतरदीमगा' फर्म भूमिक, अकर्मभूमि और अन्तरद्वीपक इनमें जो कर्मभूमियों में-भरत ऐरवतादि पन्द्रह क्षेत्रों मेंउत्पन्न होते हैं के कर्मभूमिक, मवन आदि तील अकर्मभूमियों में जो उत्पन्न होते है-वे अकर्मभूमि कहलाते हैं। दो लाख घोजन के विस्तारव ला लवण समुद्र के भीतर भीतर जो द्वीप है, वे अन्तर बीप हैंइन छप्पन अन्तरद्वीपों में जो उत्पन्न होते हैं वे अन्तर द्वीपक मनुष्य हैं। અને બધી પાંચે પર્યામિયથી અપર્યાપ્ત હોય છેઆ અંતમુહૂર્તના આયુષ્યમાં જ ४.१ ४२ छ. 'से त संमुच्छिममणुस्मा' ! स भूमि भनुप्यातुं नि३५९ ४थु छे. डवे गम भनुध्यान ३५ ४.पामा मावे छ 'से कि त गम्भ वक्क तिय मणुस्सा' 3 भगवन् गम भनुष्याना टसा लेड ह्या छ ? सा प्रश्न उत्तरमा असुश्री गौतमभान छेउ गोतम ! 'गम्भवक्क तिय मणुस्सा तिविहा पण्णत्ता' आम व्युत्पतिx-Mr मनुष्याना त्रय हो yal छ, 'त जहा' ते हो मा प्रमाणे छ 'कम्मभूमिगा, अकम्मभूमिगा, अतरदीवगा' કર્મભૂમિક અકર્મભૂમિક, અને અંતરીપજ, આમાં જેઓ કર્મભૂમિયોમાં એટલે કે ભરત, અરવત, વિગેરે પંદર ક્ષેત્રોમાં ઉત્પન્ન થાય છે. તેઓ કર્મભૂમિક કહેવાય છે બે લાખ એજનના વિસ્તારવ ળા લવણ સમુદ્રની અંદર અંદર જે દ્વિીપ છે, તે અંતરદ્વીપ છે. આ છપન અંતરદ્વીપમાં જેઓ ઉત્પન્ન થાય છે. તેઓ અંતરદ્વીપક મનુષ્ય છે,
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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