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________________ म ४५० जीवामिगमसूत्रे कादिनामकानि विमानानि सन्ति तथैव कामादिनामकान्यपि विमानानि सन्ती त्युत्तरम् । 'णवरं सत्तओवासंवराई सेसं तहेन' नवरमत्र सप्तावकाशान्तराणि. शेष-शेपमत्र तथैव अचिरादि सूबवदेव व्याख्येयम् । स खलु देवस्तानि विमानानि पूर्वोक्तया दिव्यया देवगत्या कश्चित तिव्रजेत् कश्चिद्देवः किञ्चनविमानं व्यतिक्रमेन किञ्चन विमानं नो व्यतिक्रमदित्यादिकं सत्र पूर्वरदेव ज्ञातव्यमिति भावः। ___ 'अस्थि णं भंते ! विमाणाई' गन्ति खन यदन्त ! विमानानि 'विजयाई' विजयनि-विजयनामकानि वेजयंताई वैजयन्तानि 'जयंताई' जयन्तानि 'अपराजियाई अपराजितानि इति प्रश्ना, भगवानाह-'हता अत्यि' हन्त गौतम ! परन्तु यहां इनकी विशालता जानने के लिये 'णवरं यत्त पोषा संतराइ विकमे सेसं लहेच' या मान्य अवकाशान्तर करना चाहिये इस तरह इतने अपक्षाशान्तर एक बार में घूमने की शक्तिवाले देव कम से कम एक दिन तक या दो दिन तक अधिक से अधिक छह मास तक चलता हुआ कोई एक देव उल कामादि विमानों में से किसी एक विमान को ही उल्लड़ सकता है तथा किसी को नहीं भी उल्लंघन कर सकता है। पेसी बड़ी भारी विशालता उन विमानों की है इत्यादि रूप से सब कथन पूर्वोक्त जैसा ही यहां समझ लेना चाहिये. 'अस्थि णं भंते ! विजयाई विमाणाई' हे भदन्त ! क्या विजय मानके विमान है ? 'वेजयंताई धैजयन्त नाम के विमान है 'जयताई' जयन्त नाम के विमान है 'अपराजिया' अपराजित नाम के विमान है ? gan छ. ५ महिया मा विमानानी विशालता तपा माटे 'णवर सत्त आवासंतगई विक्कमे सेसं तहेव' मडियां सात अशान्त डा न. આ રીતે આટલા અવકાશાન્તરો એક વારમાં ઓળંગવાની શક્તિવાળે દેવ ઓછામાં ઓછા એક દિવસ સુધી અથવા બે દિવસ સુધી અને વધારેમાં વધારે છ મહીના સુધી ચાલતે કેઈ દેવ એ કામ વિગેરે વિમાને પિકી કોઈ જ એકાદ વિમાનને જ ઓળંગી શકે છે. તથા કેઈને ઓળંગી ન પણ શકે. અર્થાત કેઈક જ વિમાનને પાર કરી શકે છે, અને કેઈકને પાર ન પણ કરી શકે. આવી ઘણી મોટી વિશાળતા આ વિમાનોની છે. ઈત્યાદિ પ્રકારનું સઘળું કથન પહેલા કહ્યા પ્રમાણેનું સમજી લેવું. 'अस्थि ज भते ! विजयाई विमाणाइ' से समपन् शुविorय नाम विभान छ१ 'वेजय'ताई' वैश्यन्त नामनु विभान छ १ 'जयंताई" यत नामनु विमान छ १ 'अपराजियाइ' ०५५२ त नामनु विभान छ ? मा
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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