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जीवामिगमस्ते एवान्तर्भवन्ति हरितकायोऽपि वनस्पतौ अन्तर्भवति वनस्पतिरपि स्थावरेषु अन्त. भवति, स्थावरा अपि जीवत्वेन जीवेषु अन्तर्भवन्ति ततः 'ते एवं समणुगम्ममाणा -समनुगम्यमाणा' ते एवं ते हरितकायादयः समनुगम्यमानाः समणुगम्यमाना, जात्यन्तर्भावेन स्वतएव सूत्रतः, तथा-'एवं समणुगाहिज्जमाणा समणुगाहिज्जमाणा' समनुग्राह्यमाणाः समनुप्राह्यमाणाः परेण सूत्रत, एव, तया'समणुपेहिज्जमाणा ,समणुपे हिज्जमाणा' समनुप्रेक्ष्यमाणाः समनुपेक्ष्यमाणा:, अनुप्रेक्षया अर्थालोचनरूपया तथा-'समणुचितिज्जमाणा समणुचिंतिज्जमाणा' समनुचिन्त्यमानाः समनुचिन्त्यमानाः शास्त्रयुक्तिमिः जीवत्वेन सम्यगविचार्यमाणाः सन्त: 'एएसु दोस काएमु समोयति' ते हरितकायादयो जीवा एतयो रेव वक्ष्यमाणगोर्द्वयोः काययोः समवतरन्ति-समाविष्टा भवन्ति, 'तं जहा' तघथा-'तसकाए चेव थावरकाए चेव' त्रसकाये च स्थावरकायेचेति । 'एवमेव' तकाय के भेद हैं वे भी सब हरिलकाय में परिगणित हुए हैं तथा हरितकाय जो है वह वनस्पति में परिगणित हुआ है वनस्पतिकाय स्थावर जीवों में परिमाणित हुआ है स्थावर जीव जीवसामान्य में अन्तर्भूत हुआ है इस प्रकार से वे हरितक्षायादिक सब 'समणु गम्म माणा २' स्वतः ही स्त्र के अनुसार समझे जाकर तथा 'समणुगाहिजखाणा २' पर क्षेबाश खून के अनुसार समझे जाकर 'समणुपेहिज्जमाणा • २१ घार बार अालोचन रूप अनुप्रेक्षा द्वारा विचार किये जाने पर 'लमणु बितिज्जलाणा २' युक्ति प्रयुक्तियों द्वारा अच्छी तरह से भावित किये जाने पर उनके सम्बन्ध में यही प्रतीत हो जाता है-निश्चय हो • जाता है कि ये हरितकयादिक जीव 'एतेसु दोसु काएसु समोयरंति' इन - दो ही कायों में-स्थावरकाथ एवं त्रस काय में ही-अन्तर्भूत हुए हैं। यही बात 'तसकाए चेव थावरकाए चेव' इस पत्र पाठ से प्रकट की છે. તથા હરિતકાયને વનસ્પતિમાં ગણવામાં આવેલા છે. વનસ્પતિકાય સ્થાવર જીવોમાં ગણવામાં આવેલા છે. સ્થાવર જી જીવ સામાન્યમાં અંતર્ભત थया छे. या प्रसारीत सरिताय वि२ मा 'समणुगम्ममाणा समणुगम्म माणा' वा पा२ मथ ना मोष साथे पियार ४२di Rai तथा 'समणुगाहिज्ज माणा २' मीना द्वारा सूत्र प्रमाणे समर 'समणुपेहिन्जमाणा २' पार पार असायन ३५ मनुप्रेक्षा द्वारा विया२ ४२di Rai 'समणुचिंतिज्जमाणा' 'समणुचिंतिज्जमाणा' युटित प्रयुतिये। द्वारा सारी रीत भवित ४२वामा આબેથી તેઓના સંબંધમાં એમજ જણાય છે, અર્થાત્ નિશ્ચય થઈ જાય छ मा रतय विगेरे । 'एतेसु दोसु काए समोयरंति' स्थावाय,