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जीवामिगमस 'का गं मते ? वल्लीओ कइणं दल्लीसया पन्नता' कति खलु मदन्त ! परकया? कतिवल्लीशवानि प्रज्ञप्तानि ? भगवानाह-गोयमा' हे गौतम । 'चत्वारि वल्लीओ' चतस्रो बल्लयः पुष्पादिमूलभेदैः ज्ञातव्याः 'चत्तारि वल्लीसया पनचा' चत्वारि वरलीशवानि अवान्तरजातिभेदेन मक्षप्तानि-कथितानीति । 'कणे भंते ! लयागो पन्नत्ताओ' कति-कियसंख्यकाः ख भदन्त ! लताः प्रज्ञप्ताः, तथा-'कइ लयासया पन्नत्ता' कति लता शतानि मनपानि-कथितानीति घश्ना, भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम | 'अलया' अशी लता मूल भेदैः प्रज्ञप्ता, तथा-'अट्ठळया सया पन्नत्ता' अष्टौ लताशतानि आन्तरजातिभेदेन ___ 'फइ णं भंते ! वल्लीओ कह ण वल्लीलयाओ पन्नता हे भदन्त ! पल्लियां-एक प्रकार की लताएं-क्षितनी कही गई है। और बल्लीशत कितने कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु काते हैं-'गोयमा! चत्तारि पल्लीओ' हे गौतम ! चार वल्लियां कही गई है जो कि पुष्पादि के मृल भेदों से कही गई है और अवान्तर जाति के भेद से वल्लिशत बार कहे गये है अर्थात् चार सौ पल्लियों के अचान्तर जाति के भेद कहे गये हैं तापर्य कहने का यही है कि मूल में बल्लियों के भेद तो चार है पर एक एक पल्ली के भेद अवान्तर जाति की अपेक्षा से १०० सौ सौ
और है 'कह लताओ पन्नत्ताओ हे भदन्त ! जलाएं जितनी कही गई है और 'कह लतासया पन्नत्ता' लताशत कितने बहे गये हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! अट्ट लता' हे गौतम ! मृल में तो लताएं आठ कही गई हैं और 'अट्ठलतासयाप०' एक एक लता के सौ सौ
शथा श्रीजीतमस्वामी प्रभुश्रीन पूछे छे । 'कइ णं भंते ! वल्लीओ कइणं पल्लीसयाओ पण्णत्ताओ' लगवन् ! अर्थात् ४ प्रानी सतासारखा પ્રકારની કહી છે? અને વલલીશત કેટલા કહ્યા છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री गौतभस्वामीने ४९ छ , 'गोयमा ! चत्तारि पल्लीओ' गौतम! वहा પુષ્પ વિગેરેના મૂળ ભેદથી ચાર પ્રકારની કહેવામાં આવી છે અને અવાસ્તર જાતીના ભેદથી વલ્લશત ચાર કહેલા છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે મૂળ વલિલ-વેલેના ભેદે ચાર જ છે પણ એક એક વેલના અવાન્તર ભેદે જાતીની अपेक्षामे ४ मे से। बीत ५ थाय छे. 'कइलताओ पण्णताओ' 8 भगवन्तामा ४८ प्रारनी वाम मावीले १ भने 'कइलता सया पण्णत्ता' લતાશત કેટલા કહ્યા છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે छ । 'गोयमा! अट्टलता' हे गौतम भूण सताना 18 मे द्या छ भने 'अट्ट लयासया पण्णत्ता' गौतम ! मे से सताना से से लेहो भवान्तर