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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ ७.२ ५.२१ नारकाणां नरकभवानुभवननिरूपणम् ३१३, वेगिज्जेहितो णरएहितो' उष्णंवेदनीयेभ्य नरकेभ्या, 'रइए उन्बष्टिए समाणे. नैरविकोऽनन्तरमुर्तितो विनिर्गतः सन् 'जाई इमाई भरसलोनाल भयंति' यानीमानि, इह मनुष्यलों के स्थानानि भवन्ति लघयामोलिवालिछाणि वा सोंडिया लिंछाणि वा लिंडिया लिंछाणिका' गौलिकालिंछानि या सौण्डिका लिछानि वा-लिण्डिया लिंछाति वा 'मिछ' शब्दोऽत्रदेशीयः अग्निस्थानवाचकः, तेन गोलिका लिंछानि झुडपाकस्थानि, शौण्डिकालिंछानि-जयपाकस्थानानि, लिण्डिकालिछानि-लिण्डिका-राजापुरीपं तस्वबन्धि बहि स्थानानि 'अयाधराणि ना' अप आकरा इति का यह मानार्थ मय उस्काल्पते ते अय आकराः, एकमेव ताम्राशराबीलामणि पस्पं ज्ञातव्यम् । 'तंबागराणि वा' ताम्राकरा इति वा 'तउयामराणिका' अप्यारा इति वा 'सीसागराणि वा' सीससासरा इति वा सागराणि ' सध्याका प्रति वो, असाच कल्पना को लेकर विसावेणिज्जेदितो पहाण वेदना झाले नरकों ने 'मेहए उहिए जाणे जिला हुआ नायिक 'जाइं इमाईमणुमलोग अचंति' जो मनुष्य लोक अति - ता के स्थान है-जैह-मालिया लिंछाणिवा टिकालिछाणि क्षा लिडिया लिंछाणि हा गौडिका लिंछ शौण्डिका लिन्छ, लिण्डिा लिंछ अर्थात्-गुड पक्षाने की भट्टी, मध पकाने की भी बरी पीडीभी अग्निका स्थान ऐले स्थानों में उष्मता बहुत अधिक होती है. 'अागा णिवा' लोहे को गलाने के भट्टे 'शायराणि या 'अयमा सारये को गलाने के भट्टे 'तलयागणिया रांगे को गलाने के गहे 'लीला ' शीशे को गलाने के भट्टे 'धाराणिक्षा चांदी को गलाने के भद्दे 'सुनना गराणि वा सोने को गलाने के भट्टे हिरण्णागराणि वा हिरण कच्चे 'उसिणवेयणिज्जेहितो णरएहितो' 6. वहना वाणानीमाथी नेहए उच्चदिए समा'णे नीउणे नै२यि४ 'जाई इमाई सणुस्खलोगंसि भवंति' २ मा मनुष्य बमा सत्यतताना स्थान से भो 'गोलिया लछाणि वा खोडिया लिछाणिवा लिंडिया लिछाणिवा' dille छ, Aill, ASule, અર્થાત ગોળ બનાવવાની ભઠી, મદ્ય બનાવવાની ભઠી, બકરીની લી ડીના मनिनुस्थान, वा स्थानमा म पधारे २भी हाय छे' 'अयागराणि वा' सामने पानी सही 'त'बागराणि दो' अथवा तमा२ गाणवानी माटी 'तउयागराणि वा' संगने मागणवानी बदही 'सीसागराणि वा' सीसान सागवानी की सप्पागराणि वा' हीन भागवानी सही 'सवण्णागरा णि वा सोनान वानी ही 'हिरण्णागराणि वा' डिएयतां यां सोनाने जी ४०
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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