________________
શિ82,
जीवाभिगमन तीतानि सिदृशकरणे असंख्येयकरणे वा ताशशक्तेरभावादिति तानि पुनः-संव दाई नो असंवद्धाइ,' संबद्धानि स्वात्मनः गरीरसंलग्नानि न गसंवद्वानि स्वशरीरात् पृथगू भूतानि, स्वशरीरात् पृथग्भूतकरणे सामोमावादिति 'सरिसाई नो अमरिसाई' सदृशानि-स्वशरीर तुल्यानि नो असहशानि विरूपाणि विरूपकरणे सामाभावात् 'विउव्वंति' विकुर्वन्ति "विउवित्ता' विकुर्वित्ता 'अण्ण मण्णस्स' अन्योऽन्यस्य 'काय अभिषणमाणा अभिहणमाणा' कायं-शरीरम् अभिनन्तोऽमें समर्थ होते हैं। ताई संखेन्जाइं नो असखेलाई' ये मुद्गरादि रूपों से लेकर भिण्डिमाल तक के रूपों की जो नारक विकुर्वणा करते हैं वे संख्यात रूपों की दिकुर्वणा करते हैं असंख्यात रूपों की विकुणा नहीं करते हैं-अर्थात् नारक के अनेक रूपों की जो नारफदिणा करते हैं वे उनके विक्रुर्वित रूप संख्यात ही हो सकते है-असंख्यात नहीं होते हैं क्यो कि असंख्यात रूपों को विकुर्वित करने की उनमें शक्ति नहीं होती है 'संबद्धाई नो असंबद्धाई' ये विकृमि हुए रूप उन नारक जीवों के शरीर से संबद्ध होते हैं 'नो असंरद्धाई' असंबद्ध नहीं होते हैं । अर्थात् शरीर से अलग नहीं होते हैं। क्योंकि शरीर से पृथक् भूत करने में उल में सामर्थ्य का अभाव रहता है-'सरिसाई नो असरिसाई ये उनके द्वारा विर्षित किये रूप उनके ही अपने शरीर के तुल्य होते हैं असश -विरूप नहीं होते हैं क्योंकि विरूप करने की उनमें शक्ति का अभाव है 'विउवित्ता अण्णमण्णस्स कार्य अभिहणमाणा अभिहणमाणा देयणं q ४॥ शाम सभ डाय छे. 'ताईसंखेन्जाई नो अस खेज्जई' मा સુગર વિગેરેથી લઈને સિંદિપાલ સુધીના રૂપની જે નારકે વિકૃણા કરી શકવામાં સમર્થ હોય છે, તેઓ સખ્યાત રૂપની વિકૃણા કરે છે. અસંખ્યાત રૂપની વિકુવા કરતા નથી. અર્થાત્ જે નારકે અનેક રૂપોની વિમુર્વણુ કરે છે. તે તેઓએ વિકવિત કરેલા રૂપે સંખ્યા જ હોય છે. અસંખ્યાત હતા નથી કેમકે અસંખ્યાત રૂપોની વિમુર્વણા કરવાની તેઓમાં શક્તી જ હતી नथी. 'सबद्धाइ नो अस बद्धाइ' । विदित ४२वामा सावता ३२॥ से ना२४ वाना शरीरथी समाय छ 'नो अस बद्धाइ' मसात नथी. અર્થાત્ શરીરથી જુદા હોતા નથી. કેમકે શરીરથી જુદા કરવામાં તેઓમાં साभाय न ममा २ छे. 'सरिसाइनो असरिसाइ' मा तेसो द्वारा विनित કરવામાં આવેલા રૂપે તેમના પિતાના શરીરની બરાબર હોય છે અસદશ १३५ खाता नथी. 3 १ि३५४२पानी तमामा शतिनाममा छे. विउवित्ता