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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ.२ ६.१८ नारकजीवानां संहनननिरूपणम्
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सम्पति - नारकाणां शरीरेषु वर्णषतिपादनार्थमाह-' इमी से णं' इत्यादि, 'इमी से णं भंते' एतस्यां खलु भदन्त ! 'स्यजपमार पुढवीए' रत्नम भार्या पृथिव्याम् 'नेरयाणं' नैरविकाणास 'सरीरया केरिसया वण्णं पन्नत्ता' शरीराणि कीटशानि वर्णेन ज्ञतानि - कथिनीति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'ntent' t alar ! 'कालाकापाता जाव परमकिण्डा बण्योगं पचता' काळानि कलासानि यात गम्भीरलोनपीणि भीमानि उत्रासनकानि परमकृष्णानि नारकाणां शरीराणि वर्णेन मज्ञानि ' एवं जाव अहे सत्ताए' एवं यावदधः सप्त प्रभा पृथिवी के नारकों के भी दोनों प्रकार के शरीर हुण्डक संस्थान वाले होते हैं- ऐखा जानना चाहिये.
अब नारकों के शरीर के वर्ण कैसे होते हैं- इसका कथन सुत्रकार करते है
गौतम प्रभु से ऐसा पूछते है 'इमीले णं भंते! रथणप्पभाए पुढीए' हे ! इस रत्नप्रभा पृथिवी के नरकावालों के 'नेरयाणं सरी केरिया पण्णं पण्णसा' नैरधिकों के शरीर वर्ण से कैसे होते है- अर्थात् कैसे वर्ण वाले होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोघमा ! कोला, कालो भाषा, जाब परमकिन्दा वण्णेणं पन्नसा' हे गौतम! प्रथम पथिवी के नरकावालों के नारकजीवों के शरीर वर्ण की अपेक्षा काले कृष्णप्रभा वाले देखते ही शरीर में रोगटे खडे कर देने वाले, भयजनक और परम कृष्ण होते हैं । 'एवं जाव अहे सत्तमाए' इसी શરીરા હુડક સંસ્થાનવાળા હોય છે, તેમ સમજી લેવું હવે નારકાના શરીરશના વણુ` કેવા હેાય છે उथन उरे छे.
એ સંધમાં સૂત્રકાર
या समधसां गौत स्वासी प्रभुने मे पूछ्यु' हे 'इमीसेण संवे ! रयणप्पभाए पुढवीए' हे भगवन् या रत्नला पृथ्वीना नरडावासीभां रहेवावाणा 'नेरइया णं' सरीरा के रिसया वण्णेणं पण्णत्ता' नैरयिोना शरीरो हेवा वा વાળા હાય છે ? એટલે કે તેના શરીરાના વણુકવા હોય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरभां प्रभु उडे छेडे 'गोयमा ! काला कालोभासा, जाव परमकिण्हा वण्णे ण' पण्णत्ता' हे गौतम ! पहेली पृथ्वीना नरवास मां रडेवावाजा नार लवा ના શરીરના વધુ કાળા, કાળી કાંતી વાળા કે જેને જોવાથી જ શરીરના રૂંવાડા ઉભા થઈ જાય એવા અને ભયકારક અત્યંત કૃષ્ણુ કાળા હાય છે. 'एव' जाव अहे सत्तमाए' ४ प्रभा मी पृथ्वीथी सहने अधःससभी
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