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________________ जीवामिगमसूत्रे रत्नभायां पृथिव्यां नैरयिकाणां शरीराणि कीदृशानि गन्धेन प्रज्ञप्तानि ? गौतम स यथानामा अहिमृत इति वा, तदेव यात्रदधः सप्तम्याम् । एतस्यां खलु भदन्त ! रत्नप्रभायां पृथिव्यां नरयिकाणां शरीराणि कीदृशानि स्पर्शन प्राप्तानि ? गौतम ! स्फटितच्छवि विच्छवयः खरपरुपमाममपिराणि स्पर्शेन मनप्तानि । एवं यावदधः सप्तम्याम् ॥१० १८॥ टीका--'इमीसे णं भंते' एतस्यां खलु भदन्त ! 'रयणप्पभाए पुढवीए' रत्नप्रभायां पृथिव्याम् 'नेरइयाणं नैरयिकाणाम् 'सरीरया कि संघयणी पन्नत्ता' शरीराणि कि संहननानि-कीदृशसंहननयुक्तानि भवन्तीति प्रश्ना, भगवानाइ'गोयमा' इत्यादि, गोयमा ! हे गौतम ! 'उण्हं संघयणाणं असंघयणा' पण्णासंहननानामसंहननानि नारकशरीराणि भवन्तीति । नारकशरीराणि कुतः संहननवन्ति न भवन्ति तत्राह-'णेवट्ठी' इत्यादि, 'णेवट्ठी' नैवास्थि, नारकशरीरे अघ स्त्रकार नारक जीवों का संहनन प्रकट कहते हैं 'हमीले णं भंते ! रघणप्पभाए पुढवीए नेरयाणं सरीरया किं संघषणी' -इत्यादि सूत्र-१८ टीकार्थ-गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछे है-'हमीसे गं भंते !' हे भदन्त ! इस 'रयणप्पभाए पुढवीए' रत्नप्रभा पृथिवी में 'सरीरया' नैरकियों के शरीर कि संघयणी पन्नत्ता' किल संहनन थाले कहे गये हैं? 'गोयमा छह संघयणाणं असंघयणा' उत्तर में प्रभु कहते है-हे गौतम ! नारकों के शरीर छह संहननों के बीच में से किसी भी एक संहनन वाले नहीं कहे गये हैं। क्योंकि नारकों के शरीर संहनन से हीन होते हैं। ये संहनन से हीन क्यों होते हैं ? इसका कारण का कथन करते हुए सूत्रकार कहते हैं-'णेवट्ठो' नारक के शरीर में हड्डियां नहीं हैं 'णेव छिरा' वे सूत्रा२ ना२४ वाना सहनननु नि३५ रे छ. 'इमीसे ण भते ! यणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया किं संघयणी' त्यादि टीआय-गीतमस्वामी प्रसुन से पूछ्यु छ 'इमीसे णं भंते ! 3 महन्त ! म 'रयणप्पभाए पुढवीए' २नमा पृथ्वीमा 'सरीरया' नयिाना शरी। 'कि' संघयणी पण्णत्ता' या सडननवाणा हेछ ? 'गोयमा ! छह समयणाणं असं घयणा' मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४३ छे गौतम! નારકોના શરીરે છ સંહનને પૈકી કઈ પણ એક સંહનનવાળા હોતા નથી. કેમકે નારકેના શરીરે સંહનન વિનાના હોય છે. તેઓ સંહનન વિનાના भ डाय छे. मे स मां तनु १२ मतापता सूत्र२ ४ छ ॐ 'णेवट्ठी' -
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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