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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ ०८ सप्तपृ. घनोदध्यादीनां तिर्यग्बाहल्यम्
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तिष्ठति । चथा- वलयाकार संस्थानप्रतिपादनसमये शर्कराममायाः पृथिव्या घनोदधिबलयः शर्करा पृथिवीं सर्वयः समन्तात् संपरिक्षिप्य तिष्ठतीति वक्तव्यं तथा बालुकाप्रभाषा घनोदधिवलयो वालुकामां पृथिवी संपरिक्षिप्य तिष्ठतीत्यादि रूपेग यावत् तस्य मभा पृथिवीगत घनोदधिवलयः सप्तमीं तमस्तम:प्रभां पृथिवीं संपरिक्षिप्य तिष्ठतीति वक्तव्यमिति । 'इमी से णं भंते' एतस्याः खल भदन्त ! ' रयणप्पमाए एढनीए' रत्नप्रभायाः पृथिव्याः 'घगवायचलए' Trademat घनोद धेरधस्ताद्विद्यमानः 'किं संठिए पन्नत्ते' कि संस्थितः कीदृश संस्थानसंस्थितः प्रज्ञप्तः - कथित इति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम! ' वळयागारे' वृत्तो वलयाकारः संस्थानसंस्थितः मज्ञप्तः कथ ज्ञायते यदयं वाढवलयो वलयाकार संस्थानसंस्थित इति, तत्राह - 'तहेब' शर्करामा पृथिवी को चारों ओर घेरे हुए हैं, वालुकाप्रभा पृथिवी का घनोदधि वलय बालुकाप्रभा पृथिवी को चारों ओर से घेरे हुए हैं, इत्यादि रूप से अपनी अपनी पृथिवी को घेरे हुए सामवीं पृथिवी तक के घनोदधि तक जानना चाहिये
'हमीले णं भंते!' हे भदन्त ! इस 'स्यणप्पभाए पुढवीए घनवाय वलए किं संठिए पन्नत्ते' रत्नप्रभा पृथिवी का जो घनवात वलय है उसका संस्थान - आकार कैला है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा !' हे गौतम! वह 'बट्टे वलयागार संगणसंठिए' वलय के मध्य के आकार ( भीतर के ) जैसा गोल आकार वाला कहा गया है। हे भदन्त ! यह कैसे ज्ञात होता है कि रत्नसा पृथिवी का घनवातवलय वलय के मध्य के आकार जैसा गोल आकार वाला कहा गया है ? तो इसके उत्तर વલય શકરાપ્રભા પૃથ્વીને ચારે તરફથી ઘેરીને રહેલા છે. વાલુકાપ્રભા પૃથ્વીના ઘનેધિવલય તાલુકાપ્રભા પૃથ્વીને ચારે તરફથી ઘેરીને રહેલ છે. ઈત્યાદિ પ્રકારનું કથન પાતપેાતાની પૃથ્વીને ઘેરીને સાતમી પૃથ્વી સુધીના ઘનેાધિ પન્ત સમજવું
'इमीसे ण' भते ! हे भगवन् भा 'रयणप्पभार पुढवीए घणवायवलए कि' संठिए पन्नत्ते' रत्नप्रला पृथ्वीनो ने धनवातवसय छे तेनुं संस्थान अर्थात् आहार व छे ? या प्रश्नमा उत्तरमा प्रभु ! 'गोयम! !' गौतम । वट्टे वलयागारस' ठाणस ठिए' मलोयाना मध्यभागनी वथमाना भार જેવા ગાળ આકારવાળા કહેલ છે. હે ભગવન્ એ કેવીરીતે જાણી શકાય કે રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ઘનવાતવલય ખલેાયાના મધ્ય ભાગના આકાર જેવા ગાળ भारना डेत छे । म प्रश्नना उत्तरमा अलु हे हे हे 'तद्देव' हे गीतर्भ ।
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