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________________ जीवाभिगमने नादः मन्यानीतस्य भरतादि वामयोगाद् भारतीयोऽयमिति भरतादि प्रवृत्तव्यपदेशस्य भवायु:एक कानपमाप्रामे समुन्पन्नस्य जातव्यानि । धर्मचरणं प्रतीय जघन्येनैक समयम् इन देशोना कोटिरिति । एतस्य द्वयस्यापि पूर्ववदेव भावना कर्तव्या । पूर्वविदेहापरविदेरकर्मम् मेक मनुष्यपुत्पस्य क्षेत्राश्रयणेन जघन्यतोऽन्तर्मुहर्तम् उत्कर्पतः पूर्वकोटिपृथ या वयाने भवति, तप्त वारं वारं तव सप्तवारानुत्पत्तिमधिकृत्य भावनीयम् , यत स्तत मदन्यं गयन्नं योन्यन्तरे वा तस्य संक्रमो भवति । धर्मचरण प्रतीत्य जघन्येनेक समयसुती देशोना पूर्वकोटिग्वस्थानन । तथा सामान्यतोऽकर्मभूमिकमनुष्यपुरुषस्य तद्भाव पर यजतो जमाती य न्यन्येनेक पन्योपमं पल्योपमासंस्येयभागहीनम् । उत्कर्पत स्त्रीणि दुन लाया नाय, दद भरनादि में निवाम किया इसलिये यह भारतीय है ऐसे व्यपदेश वाला होता, वह अपने भवांवन्धी आयु के क्षय होने पर पकांत सुपमा कालके प्रारंभ में उत्पन्न हो जाता है, उसको मोक्षा से जानना चाहिये । चारित्र धर्म की अपेक्षा लेकर इनका अवस्थान का जपन्य से एक समय का है और उत्कृष्ट से देशोन पूर्व कोटि का है। इन जघन्य पौर डट दोनों की भावना पहले जैमो हा कर लेनी चाहिये । पूर्व विदेह और अपर विदेह ह भूमिम मनुष्य पुरुष का क्षेत्र की अपेक्षा लेकर अवस्थान काल जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त मोर से पूर्व कोटि पृथक्व है यह अवस्थान काल पुन. पुनः वही सातवार उपन्न होने कारण जान लेना चाहिए क्योंकि यहा से निकलने के पश्चात् अवश्य मना मन' योन्यन्तर में कम हो जायेगा । चारित्रधर्म की अपेक्षा लेकर इनका यान फाल जपन्य से एक ममय का और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वक टिका है । तथा सामान्य मक्षामिक गद्य पुरुष का ग की अपेक्षा लेकर भवस्थान वाल जघन्य से पल्योपम છે બતદિમ નિવાસ કર્યો માટે તે ભારતીય છે. એવા વ્યપદેશ વાળ હોય છે. તે છે. જેના ૧ બંધી હુંય કામ થાય ત્યારે એકાન્ત માં કાળના પ્રારંભમાં ઉત્પન્ન ' છે ને પેલી સમજવું. ચારિત્ર ધર્મની અપેક્ષાથી તેને અવસ્થાન કાળ જઘન્ય :* મને છે. અને ઉદ્દેશ દેન પૂર્વ ટિને છે. આ જઘન્ય અને ઉદ્દષ્ટ બનેની જે પાપની જેમ કરી વિદડ અને અપર વિદે, કર્મભૂમિ જ મનુષ્ય પુરુષને અવ* : ૨ ની નામ થી એક બંનમું છે અને ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વ કોટિ પૃથત મા, અમીન , કરી કરીને જ માનવાર ઉત્પન્ન થવાના કારણુથી સમજવા છે કેમ કે, નીતિન પછી ગતિમાં અથવા બીજી પેનિમાં સંક્રમ થઈ જાય ક -- ' જમર ૧૮ વર્ષ છે. ગ િધર્મની અપેક્ષાથી તેને અવસ્થાન કાળ જઘન્ય . .. ५. सान टिना . तया सामान्य दशत भ. नुमान१९५: रामनी गायी न्यथा ५श्यामना मन भ्या
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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