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प्रमेयधोतिका टीकाप्रतिप० २
णां सत्वेनावस्थानकालनिरूणम् ४३३ णा सत्वनावस्थानकाल
न्यस्य , समयमात्रप्रमाणत्वात् उत्कणानन्त कालं देशोनम् अपार्द्धपुद्गलपरावतं यावदन्तरं भवति ततः परमवश्य चरणधर्मस्य प्रतिपातसंभवः, यत इतो नाधिकश्चरणलब्धिप्रतिपातकालः, सम्पूर्णस्यापि अपार्धपुग्दलपरावर्तरूपस्य दर्शनलब्धिप्रतिपातकस्य तत्र तत्र प्रदेशे प्रतिषेधादिति 'एवं जाव पुचविदेहअवरविदेहियाओ' एवं यावत् पूर्ववैदेह्यपरवैदेह्यः. यावत्पदेन-भरतैरवतमनुष्यस्त्रियाः संग्रहो भवति, तथा च भरतैरवतमनुष्यस्त्रियाः पर्वापरविदेहस्त्रियाच क्षेत्र प्रतीत्य जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण वनस्पतिकाल यावदन्तरं भवति धर्मचरणं प्रतीत्य तु जघन्यत एकं समयम् उत्कर्षण देशोनमपाईपुद्गलपरावतं यावदन्तरं भवतीति ।
कर्मभूमिकमनुष्यस्त्रिया अन्तरं प्रदर्य अकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियाः अन्तरं दर्शयितुमाह 'अकम्मभूमिग' इत्यादि, 'अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते' अकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीणां पर्यन्त रह सकती है इसके बाद तो वह नियत प्रतिपतित हो जाती है क्योंकि संपूर्ण अपार्थ पुद्गल परावर्त दर्शनलब्धि के प्रतिपात का काल उस उस प्रदेश में नहीं माना गया है, इसी कारण यहां देशोन अपाधं पुद्गलपरावर्त तक का अन्तर कहा गया है "एवं पुनविदेह अवरविदेहियाओ', इसी प्रकार से भरत क्षेत्र एवं ऐवत क्षेत्र की मनुष्य स्त्रियां में एवं पूर्व विदेह और अपर विदेह की मनुष्यस्त्रियों में पुनः स्त्रीत्व होने का अन्तर क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य से तो एक अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट से वनस्पति काल प्रमाण है तथा चारित्रधर्म को लेकर जघन्य से एक समय का है और उत्कृष्ट से देशोनअपार्थ (अर्ध) पुद्गलपरावत्त का है।
इस प्रकार से कर्मभूमिक मनुष्य स्त्रियों में पुनः स्त्रीत्व रूप से होने में अन्तर का कथन करके अब सूत्रकार अकर्म भूमिक मनुष्य स्त्रियों के अन्तर को दिखाते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पछा है-'अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीण भते ? केवइयं काल अंतरं होइ" हे भदन्त ! अकर्मभू અર્થાત પ્રાપ્તકરવામા આવેલ ચરણલબ્ધિ એટલા સમયસુધી રહી શકે છે. તે પછી તે નિયત પ્રતિપતિત થઈ જાય છે. કેમકે–સંપૂર્ણ અપાઈપુદગલ પરાવર્ત દર્શનલબ્ધિના પ્રતિપાત નકાળ તે પ્રદેશમાં માનવામાં આવેલ નથી. એ જ કારણે અહિયાં દેશન અપાઈ પુદ્ગલ पशवत सुधी भत२ ४डत छ, “एवं जाव पुचविदेह अवरविदेहियायो" 20 शत ભરત ક્ષેત્ર અને અરવતક્ષેત્રની મનુષ્ય સ્ત્રિયામાં ફરીથી સ્ત્રીપણું પ્રાપ્ત થવાનું અંતર ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી જઘન્યથીતે એક અંતમુહૂર્તનું છે અને ઉત્કૃષ્ટથી વનસ્પતિકાલ પ્રમાણ છે તથા ચારિત્રધર્મ ને લઈને જઘન્યથી અંતર એક સમયનું છે. અને ઉત્કૃષ્ટ દેશેન અપાઈદેશન યુદૂગલ પરાવતનું છે. - આ રીતે કર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિમાં ફરીથી સ્ત્રીપણાની પ્રાપ્તિ થવામાં અંતરનું કથન કરીને હવે સૂત્રકાર અકર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિયોનું અંતર બતાવે છે – આમાં ગૌતમ સ્વામીએ प्रसनेमे ५७युछ ४-"अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवइयं कालं अंतर होई" 8
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