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________________ VANANAA अमेयद्योतिका टीका प्रति० २ स्त्रीणां स्त्रीत्वेनावस्थानकालनिरूपणम् ४२५ म्यकवर्षाकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीरूपेण कियत्कालमवस्थानं भवतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जम्मणं' पडुच्च' जन्म प्रतीत्य जहन्नणं देसूणाई दो पलिओवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणगाई' जघन्येन देशोने द्वे पल्योपमे पल्योपमस्यासंख्येयभागेन ऊनके, 'उक्कोसेणं दो पलिओवमाई उत्कर्षेण संपूर्णे द्वे पल्योपमे यावदवस्थानं तादृशस्त्रीरूपेण भवतीति । 'संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' संहरणं प्रतीत्य-संहरणापेक्षया जघन्येनान्तर्मुहूर्तमात्रम् 'उक्कोसेणं दो पलिओवमाइं देसूणाए पुवकोडीए अब्भहियाई उत्कर्षेण द्वे पल्योपमे देशोनया पूर्वकोट्या अभ्यधिके यावदवस्थानं भवति तादृशस्त्रियाः वीरूपेण भावना प्राग्वदेवेति । 'देवकुरूत्तरकुरुअकम्मभूमिए' देवकुरूत्तरकुर्वकर्मभूमिकस्त्रीणामेतादृशस्त्रीरूपेण कियत्कालमवस्थान भवतीति प्रश्नः, भगवानाह -'गोयमा' हे गौतम ! 'जम्मण पडुच्च' जन्म प्रतीत्य -- जन्मापेक्षया 'जहन्नेणं देसूणाई तिन्नि पलिओवमाई पलिओवमस्स असंखे भूमिकी मनुष्य स्त्रियां है उनका वहा उस रूप से-मनुष्य स्त्री रूप से रहनेका काल कितना है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेण देसूणाई दो पलिओवमाइं पलिओचम स्स असंखेज्जइभागेण ऊणाई" हे गौतम ! जघन्य की अपेक्षा लेकर तो जघन्य काल पल्योपम के असंख्यातवें भाग रूप देश से न्यून दो पल्योपमका है और "उक्कोसेणं दो पलिओवमाई, उत्कृष्ट से पूरा दो पल्योपम का है इस प्रकार हरिवर्ष और रम्यक वर्षकी अकर्मभूमिक की मनुष्यस्त्रियां वे मनुष्य स्त्री रूप से रहती है । "संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो पलिओचमाई देसूणाए पुचकोडीए अभहियाई" संहरण की अपेक्षा से जघन्य काल एक अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट काल देशोनपूर्वकोटि से अधिक दो पल्योपम का है। भावना पूर्व की जैसी समझलेवें । "देवकुरूत्तरकुरुअकम्मभूमिए०" हे भदन्त ! देवकुरु और उत्तरकुरु की मनुष्यस्त्रियो का वहाँ की मनुष्यत्री रूप से रहने का काल कितना है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं देसूणाई तिन्नि पलिओवमाई पलिओवહેિ ભગવન હરિવર્ષ અને રમકવર્ષની અકર્મભૂમિના મનુષ્ય સ્ત્રિ છે, તેઓને ત્યાં તે મનખ્ય સ્ત્રીપણાથી રહેવાને કાળ કેટલો કહ્યો છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને --'गोयमा! जम्मण पहुच्च जहण्णण देसूणाई दो पलिमोपमाई पलिओवमस्स असोज्जइभागेण ऊणाई"गीतमा धन्यनी मपेक्षाथी धन्य ५८यापभना मसण्यातमा लाग३५ देशथी न्यून मेपल्यापभनी छ भने "उफ्कोसेणं दो पलिमोवमाई" अष्टथी પૂરા બે પલ્યોપમને છે આ રીતે હરિવર્ષ અને રમ્યક વર્ષની અકર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિ भनुष्य सी पाथी २३ छे. "संहरणं पदुच्च जहणणेण अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं दो पलिओवमाइ देसूणाए पुवकोडीए अमहियाइ" सहरानी अपेक्षाथी धन्य मतમુહૂતને છે. અને ઉત્કૃષ્ટકાળ દેશના પૂર્વ કેટિથી વધારે બે પેપમ છે. तनी भावना-मेटो २ पडसा ४ा प्रमाणे समबेवी देवकुरुत्तरकुरुअकम्म भूमिप०"भगवन् हेक्३ भने उत्त२३३नी मनुष्य खियानु त्यांनी मनुष्य की पक्षाथी पाना छो छ ? २॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभुई छ४-"गोयमा। जम्मणं पडच्च ५४
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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