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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्रति० २ स्त्रीणां स्त्रीत्वेनावस्थानकालनिरूपणम् ४२१ 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जम्मणं पडुच्च' जन्मप्रतीत्य तत्रैवोत्पत्तिलक्षणजन्मापेक्षयेत्यर्थः 'जहन्नेण देसणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणं' जघन्येन देशोनं पल्यो पमं पल्योपमस्यासंख्येयभागेनोनम्-हीनम् , 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई उत्कर्षण त्रीणि पल्योपमानि अकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीणां स्त्रीरूपेणावस्थानं भवतीति । 'संहरण पडुच्च' संहरणं प्रतीत्य संहरणाश्रयेण तु 'जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं' जघन्येनान्तर्मुहूर्तकालं यावदवस्थानम् , अन्तमुहूर्तायुः शेषकाले संहरणाभावत् 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई देसूणाए पुच्चकोडीए अन्भहियाई' उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि देशोनया पूर्वकोट्याऽभ्यधिकानि-देशोनपूर्वकोट्यभ्यधिकपल्योपमं यावत् अकर्मभूमिकस्त्रीणामुत्कर्षतस्तादृशमनुष्यस्त्रीत्वेनावस्थानं भवतीति भावः । भूमिक मनुष्य स्त्री" यह अकर्म भूमिक मनुष्य स्त्री है "इस रूप से कितनेसमय तक रहती है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं--"गोयमा! जम्मणं पडुच्च" हे गौतम ! जन्म की अपेक्षा से तो वह "जहन्नेणं देसूणं पलिओवम" जघन्य से देशोन कुछ कम एक पल्योपम तक रहती है वह देशोन "पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागेण ऊण' पल्योपमके असंख्यातवें भाग से न्यून होता हैं । "उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइ" उत्कृष्ट से तीन पल्योपम तक वह रहती है, उत्कृष्ट भोगभूमि देवकुरु मादिकों में रहने की अपेक्षा से कहा गया है । 'संहरणं पडुच्च" संहरण की अपेक्षा से “जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं' अकर्म भूमिक मनुष्य स्त्रियोंका स्त्रीरूप से रहने का काल एक अन्तर्मुहूर्त का है यह अन्तमुहूर्त आयु के शेष रहते उसका संहरण होने की अपेक्षा से कहा है | और "उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई देसूणाए पुव्वकोडीए अब्भहियाई" उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि से अधिक तीन पल्योपम तक का है। अवस्थान का काल प्रमाण कैसे होता है सो प्रकट करते है जैसे कोई पूर्व विदेह અકર્મભૂમિ જ મનુષ્ય સ્ત્રી, આ અકર્મભૂમિ જ મનુષ્યસ્ત્રી છે. એવા પ્રકારથી કેટલા સમય सधी २४ छे ! ॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४९ छ -'गोयमा ! जम्मणं पदुच्च" के गौतम! नभनी अपेक्षाथी तो ते "जहण्णेणं देसूणं पलिओवम" धन्यथा हेशान Us४भ मे पक्ष्या५म सुधी २९ छे. ते शान "पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण अणं" पक्ष्यापमना असभ्यातमा साथी न्यून डाय छे. "उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई" 68. ષ્ટથી ત્રણ પાપમ સુધી રહે છે. તે ઉત્કૃષ્ટગભૂમિ દેવકુરૂ વિગેરેમાં રહેવાની અપેક્ષાથી ४स छ. “संहरणं पडुच्च" सडणुनी अपेक्षाथी 'जहण्णेण अंतो मुहुत्तं" भभभूमि:મનુષ્ય સ્ત્રિને સ્ત્રીપણુથી રહેવાને કાળ એક અંતમુહૂર્ત છે. આ અંતર્મુહૂત આયુબાકી २२ त्यारे तेनु स २४थवानी मयेक्षाथी डेस छे भने “उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई देसूणपपुवकोडीए अमहियाई' थी देशानपूरिया पधारे ५८यापम सुधील છે આ અવસ્થાનકાળ પ્રમાણ કેવીરીતે થાય છે ? તે હવે બતાવવામાં આવે છે–જેમ કેઈ
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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