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________________ ४१८,' जीवाभिगमय. , पशमवैचित्र्यत एकस्यैव समयस्य संभवात् ततः मरणेन प्रतिपातसंभवात्, उत्कर्पतो देशोना पूर्वकोटिः, समग्रचारित्रकालस्योत्कर्षतोऽपि एतावन्मात्रप्रमाणत्वात् । भरतैरवत्यः स्त्रियोऽपि एवमेव,. भरतैरवतक्षेत्रस्त्रियामपि अवस्थानमानमेवमेव ज्ञातव्यम्, किन्तु सामान्यकर्म भूमिकमनुष्यस्यपेक्षया एतासां यद्वैलक्षण्यं तत् ‘णवरं' इत्यादिना प्रदर्शयति-'णवरं खेत्तं पडुच्च, जहन्नेणं अंतोमुहुत्त' नवर, विशेषस्त्वयम् , यत् क्षेत्रं प्रतीत्य भरतादि क्षेत्रमेवाश्रित्य , जघ. . न्येनान्तर्मुहूर्तमवस्थानं स्त्रीरूपेण, 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई देसूणं पुन्चकोडी अब्भ चारित्रधर्म लेकर जघन्य से एक समय का स्त्री रूप से अवस्थान कहा है क्योंकि सर्वविरति परिणाम का तदावरण कर्म के क्षयोपशम की विचित्रता से एक समयमात्र काल का ही सभव है, तदन्तर मरण हो जाने से सर्वविरति परिणाम का प्रतिपात हो जाता है । और उस्कृष्ट से देशोन पूर्व कोटी कहा है उसका कारण यह है कि संपूर्ण चारित्र काल का उत्कृष्ट प्रमाण इतनाही होता है, आठ वर्ष रूप देश से न्यून होने से देशोन कहा हैं, चरम श्वासोच्छ्चास' पर्यन्त' चारित्र पालने के कारण पूर्वकोटि कहा है। "भरहेरवया वि" सामान्य मनुष्यस्त्री का जो अवस्थान काळ प्रमाण कहा गया है वैसे ही अवस्थान काल का प्रमाण भरत और!' ऐरवत स्थित कर्मभूमिक स्त्री का भी जानना चाहिये, परन्तु सामान्य मनुष्य स्त्री के अवस्थान काल की अपेक्षा इसके अवस्थान काल में जो अन्तर है वह "णवरं' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकर्ट किया गया है, नवर विशेष यह है कि "खेत्तं पडुच्च" भरतादि क्षेत्र की अपेक्षा इसके अवस्थानकाल का प्रमाण 'जहन्नेण अंतोमुहुत्तं' जघन्य से तो एक अन्तर्मुहूर्त का है और 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिभोवमाइं देसूणं पुधकोडीअमहियाई उत्कृष्ट से इसके अवस्थान काल का ચારિત્ર ધર્મને લઈને જઘન્યથી એક સમયનું સ્ત્રી પણુથી અવસ્થાન–સ્ત્રીપણામાં રહેવાનું કહ્યું છે. કેમકે–સર્વવિરતિ પરિણામનું તદાવરણ કર્મના ક્ષપશમની વિચિત્રતાં થી એક સમય માત્ર કાળજ સંભવે છે તે પછી મરણ થઈ જવાથી સર્વવિરતિ પરિણામનું આગમન થઈ જ જાય છે અને ઉત્કૃષ્ટથી દેશનપૂર્વકેટિ કહેલ છે. તેનું કારણું એ છે કેસ પૂર્ણ ચારિત્ર કાલનું ઉત્કૃષ્ટ પ્રમાણ એટલું જ હોય છે. આઠ વર્ષની અવસ્થા. . માં ચારિત્ર લેવામાં આવે છે. તેથી તે આઠવર્ષ રૂપ દેશથી ન્યૂન હોવાથી દેશેન કહેલ छ "भरहेरवयावि" सामान्य मनुष्य श्रीन २ मवस्थान अ स छ मेरी प्रमाणेना' અવસ્થાનકાળનું પ્રમાણ ભરત અને એરવતમાં રહેલ કર્મભૂમિની સ્ત્રીનું પણ સમજવું પરંતુ, સામાન્ય મનુષ્ય સ્ત્રીને અવસ્થાન કાળની અપેક્ષાથી આના અવસ્થાન કાળમાં જે અંતર छ, “णवरं" मा सूत्रया द्वारा प्रगट ४२वामां मावेस छ. 'नवरं" विशेष से छे ४-" "खेत्तं पहुच्च" मरता क्षेत्रनी अपेक्षाथी माना अवस्थामा प्रमाणु “जहण्णणं अतोमुहुत धन्यथा तो मे४ मतभुतनी छे. मने "उक्कोसेणं तिन्नि पलिंगोध
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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