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प्रमैयचोप्रतिका टीका प्रति० २
देवस्त्रीणां भवस्थितिमाननिरूपणम् ३६६ कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता-कथितेति सामान्यतो देवस्त्रीणां स्थितिविषये प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं दसवाससहस्साई' जघन्येन दशवर्षसहस्राणि देवस्त्रीणां स्थितिकालो भवतीति, तानि च भवनपतिस्त्री: व्यन्तरस्त्रीरधिकृत्य ज्ञातव्यानीति । 'उक्कीसेणं पणपन्न पलिओवमाई' उत्कर्षेण पञ्च पञ्चाशत् पल्योपमानि स्थितिर्भवति देवस्त्रीणामिति, एतानि चेशानदेवीरधिकृत्य ज्ञातव्यानीति । तदेवं सामान्यतो देवस्त्रीणां स्थिति प्रदर्श्य विशेधतो देवस्त्रीणां स्थिति दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह-'भवणवासिदेविस्थीणं' इत्यादि, 'भवणवासिदेविस्थीणं भंते' भवनवासिदेवस्त्रीणां भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्तेति प्रश्नः, भगवानाह- 'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! जहन्नेणं दसवाससहस्साई' जघन्येन दशवर्षसहस्राणि स्थितिर्भवति भवनवासिदेवस्त्रीणाम् , 'उक्कोंहै भदन्त ! देव स्त्रियो की स्थिति कितने काल की कही गई है । ऐसा यह प्रश्न सामान्य से देवस्त्रियों की स्थिति के विषय में है-उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा ! जहन्नेणं, दसवाससहस्साई उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाई" हे गौतम ! जघन्य से इन की स्थिति तो दश हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट से पचपन पल्योपम की है। जघन्य से दस हजार वर्ष की स्थिति का कथन भवनपति और व्यन्तर देवस्त्रियों की अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये। तथा पचपन पल्योपम की उत्कृष्ट स्थिति का कथन ईशान देवस्त्रियों की अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये । इस प्रकार सामान्य से देवस्त्रियों की स्थिति का काल प्रकट करके अब सूत्रकार विशेष रूप से भिन्न भिन्न देवस्त्रियो की स्थितिकाल प्रकट करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा हैं "भवणवासिदेवित्थीणं अंते केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता" हे भदन्त ! भवनवासी देवस्त्रियों की स्थिति का काल कितना कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा ! जहन्ने] ठिई पण्णत्ता" हे सावन देवांगनानी स्थिति ४ जनी डिपामा भावी छ १ मा પ્રમાણે ને આ પ્રશ્ન સામાન્ય પણાથી દેવાંગનાની સ્થિતિના સંબંધમાં પૂછેલ છે આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीन ४ छे 8-"गोयमा! जहणेण दसवाससहस्साई उक्कोसेणे पणपण्णं पलिओवमाई" गोतम! धन्यथा तगानी स्थिति श १२ वर्षनी ४उवाभी આવી છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ૫૫ પંચાવન પલ્યોપમની કહેલ છે. જઘન્યથી દશ હજાર વર્ષની સ્થિતિનું કથન ભવનપતિ અને વ્યતરદેવ સ્ત્રિની અપેક્ષાથી કહેવામાં આવેલ છે. તેમ સમજવું તથા ૫૫ પંચાવન પલ્યોપમની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિનું કથન ઈશાન દેવઝિયાની અપક્ષાથી કહેવામાં આવ્યું છે તેમ સમજવું. આ રીતે સામાન્ય પણાથી દેવાંગનાને સ્થિતિકાળ બતાવીને હવે સૂત્રકાર વિશેષ પણાથી જૂદી જૂદી દેવસ્ત્રિયના સ્થિતિ કાલને બતાવે छे. मामा गीतमस्वामी प्रभुने मे पूछयुछ है-'भवणवालिदेवित्थीण भंते केवइयं काल ठिई पण्णत्ता" मगवन् सवनवासीहवीयानी स्थिति हैट अवामां आवे छ १ मा