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________________ जीयाभिगमसत्रे रणं चापि संभवति, तत्कथं देशोना पूर्वकोटि रिति कथ्यते इति चेत् अत्रोन्यते-कर्मभूमिकाल विवक्षयैतत् कथनं ज्ञातव्यम् , तस्य च कर्मभूमिकालस्यैतावन्मात्रत्वात् इति ।। ___हेमवय एरण्णवए जम्मणं पडुच्च' हैमवतरण्यवताकर्मभूमिकमनुष्यत्रीणां जन्म प्रतीत्य जन्माश्रयणेन 'जहन्नेण देसूर्ण पलिओवमै पलिओवमस्स असंखेज्जहभागेण ऊणगं' जघ. न्येन देशोनं पल्योपम पल्योपमस्यासंख्येयभागेनोनम् 'उक्कोसेणं पलिओवर्म' उत्कर्पतः परिपूर्ण पल्योपममिति 'संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं देसूणा पृन्चकोडी' संहरणं प्रतीत्य जघन्ये नान्तर्मुहूर्तमुत्कर्पण देशोना पूर्वकोटिः स्थितिरासां भवति, भावना पूर्ववदिति 'हरिवासरम्मयवास अकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते' हरिवपरम्यफवर्षाकर्ममिकमनुष्य तब तीन पल्योपम तक की स्थिति भी स्त्रियों की हो जाती है, और इस स्थिति में उनका संहरण भी हो सकता है, तो फिर संहरणकी अपेक्षा देशोन पूर्व कोटिस्थिति इनकी कैसे कही गई है। तो इसका उत्तर ऐसा है कि ऐसी लम्बी जो यहां इनकी स्थिति कही गई है वह कर्मभूमि काल की विवक्षा से कही गई है, वह कर्मभूमि काल इतने प्रमाण का होता है । ___"हेमवय एरण्णवए जम्मणं पडुच्च" हैमवत ऐरण्यवत अकर्मभूमिक मनुष्य स्त्रियों की भवस्थिति जन्मकी अपेक्षा 'जहन्नेणं देसूणं पलिभोवमं पलिओवमम्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं , जघन्य से पल्योपम के असख्यातवें भाग से हीन एक पल्योपम की है और "उक्कोसेणं पलिओवम', उत्कृष्ट से पूर्ण एक पल्योपम को है "सहरण पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देरणा पुन्वकोडी" सहरण की अपेक्षा से इनकी भवस्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से कुछ कम एक पूर्वकोटि को है । "हरिवासरम्म શંકા–ભરત અને ઐરાવત ક્ષેત્ર પણ કર્મભૂમિમાં છે અહિંયાં જ્યારે એકાન્ત સુષમાં વિગેરે કાર્ય હોય છે, ત્યારે ત્રણ પલ્યોપમ સુધી સંહરણ પણ થઈ શકે છે.-તે પછી સંહરણની અપેક્ષાએ દેશનપૂર્વ કોટિની સ્થિતિ તેઓની કેવીરીતે કહેવામાં આવેલ છે ? આ પ્રશ્નનો ઉત્તર એ છે કે–એવી લાંબી સ્થિતિ કર્મભૂમિકાળ એટલા પ્રમાણનો હોય છે. તેથી અહિયાં કહેવામાં આવી છે, "हेमवय एरणवए जम्मण पढच्च" भक्त, और यवत भभूमि मनुष्य लियोनी लपस्थिति भनी गपेक्षाथी 'जहण्णेणं देसूर्ण पलि ओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जा भागेणं ऊणगं, न्यथा पक्ष्या५मना मसच्यातमा माया माछी मे पक्ष्यापभनी छे. भने । “उक्कोसेणं पलिओवमं,' थी ५२१ मे४ पट्या५मनी त "संहरणं पहुच्च जहण्णेणं अंतोमुटुत्तं उफ्कोसेणं देसूणा पुवकोडी, सनी अपेक्षाथी मनी स्थिति धन्यथा ये मत इतनी छ, भने थी ४४४ माछी में पूर्व टिनी छे. 'हरिवासरम्मरावास अकम्भभूमिगमणुस्सित्थीण भंते! केवइयं कालं ठिई पण्ण " भगवन् !
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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