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________________ जीवाभिगमसूत्रे ३०३ उद्धृत्य द्वितीयां शर्कराप्रभा पृथिवीं गच्छन्ति, उरः परिसर्पाः नरके पश्चर्मी पृथिवीं गच्छन्ति, भुजपरिसर्पास्तु नरके द्वितीयामेव पृथिवीं गच्छन्ति इत्यनयोर्भेदः । अन्यत्सर्वं भुजपरिसर्पाणामुरः परिसर्पवदेव भवतीति । भुजपरिसर्पप्रकरणमुपसंहरन्नाह - 'सेत्तं भूयपरिसप्पा पन्नता' ते एते भुजपरिसर्पाः मेदप्रभेदाभ्यां प्रज्ञताः - प्ररूपिता इति । स्थलचरमुपसंहरन्नाह - ' से तं थलयरा' ते एते स्थलचरा भेदप्रभेदाभ्यां निरूपिता इति ॥ सू० २४|| गर्भव्युत्क्रान्तिकान् जलचरान् स्थलचरांव निरूप्य सम्प्रति - गर्भव्युत्क्रान्तिकान् खेचरान् निरूपयितु प्रश्नयन्नाह - 'से किं तं खहयरा' इत्यादि, - मूलम् —' से किं तं खहयरा ? खहयरा चउव्विहा पन्नत्ता तं जहा - चम्पक्खी, तदेव भेदो, ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं धणुपुत्तं । ठिई जहन्नेणं अतोमुहुत्त उक्कोसेणं पलिओ - वमस्स असंखेज्जइभागो ! सेसं जहा जलयराणं । नवरं जाव तच्चं पुढवि गच्छंत जाव से तं खहयरा गव्भवक्कतियपंचिदियतिरिक्खजोणिया । सेत्तं तिरिक्खजोणिया | सू० २५|| पर्याय को जब छोड़ते हैं और जब नरकों में जाते हैं तो ये द्वितीय जो शर्करा पृथिवी है वहीं तक जाते हैं आगे नहीं जाते हैं । उरः परिसर्पतो पञ्चमी पृथिवी तक जाते । इस प्रकार इन दोनों में केवल नरक गति में जाने की अपेक्षा - भिन्नता है और सब प्रकरण उरः परिसर्पों के जैसा ही है इस प्रकार से " से तं भुयपरिसप्पा पन्नत्ता" यहां तक का यह प्रकरण भुज परिसर्पो का उनके भेद प्रभेदों को लेकर कहा है । " से तं थलयरा" इस प्रकरण की समाप्ति - होते ही स्थलचर जीवों का उनके भेद प्रभेदों सहित वह प्रकरण समाप्त हो जाता है ||म्०२४|| છેડે છે, અને જ્યારે નારકામાં જાય છે, તેા તેઓ મીજી જે શર્કરા પૃથ્વી છે, ત્યાંના નારકામાં જાય છે, તેથી આગળ જતા નથી ઉર પરિસર્યાં તે પાચમી પૃથ્વી સુધી જાય છે. પા રીતે આ ખન્નેના કથનમા કેવળ નરકગતિમાં જવાની ખાખતમાં જુદા પણુ` કહેલ हे माडीनु तथाभ उथन उ२ परिसयोना उथन प्रभा ४ छे. आ रीते "से तं भुयपरिसप्पा पण्णत्ता” भा उथन सुधीनु मा अ२ लुभ्यरिसना लेह अलोहा सहित उडेस छे. "सेत्त थलयरा" या प्रमाणे स्थसयर भवना लेते। मने प्रसेहो सहितनु तेभना सौंધનું આ પ્રકરણ સમાપ્ત થયું. શાસૢ૦ ૨૪ા
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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