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________________ २९८ जीयाभिगमसूत्र यत आसालिकः संमूछिम एव भवति न तु कदाचिदपि सालिको गर्भजो भवतीति । संम् छिमोरःपरिसर्पप्रकरणाद् यद् वैलक्षण्यं तद्दर्शयति-'चत्तारि सरीरगा' इत्यादि, गर्भव्युत्कान्तिकोर.परिसर्पाणाम् 'चत्तारि सरीरंगा' चत्वारि औदारिकवैक्रिय तैजसकार्मणानि शरीराणि भवन्तीति शरीरद्वारम् । अवगाहनाद्वारे-'अवगाहना जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभार्ग' गर्भजोरःपरिसर्पाणां शरीरावगाहना जघन्येनामुलस्यासंख्येयभागं भवति तथा-'उक्कोसेणं जोयणसहस्स' ऊत्कण योजनसहनं भवतीत्यवगाहनाद्वारम् ॥ स्थितिद्वारे-'ठिइ जहन्नेणं अतोमुहुत्तं' गर्भजोर.परिसणां स्थितिः-मायुप्यकालो जघन्येनान्तर्मुहत्तं भवतीति । 'उक्कोसेणं पुचकोडी' ऊरकर्षेण पूर्वकोटि , गर्भजोर.परिसणामायुष्यकाल. उत्कएँग पूर्वकोटी परिमितो भवतीति स्थितिद्वारम् || उद्वर्तनाद्वारेऽपि जलचरापेक्षया । वैलक्षण्यं दर्शयति-'उच्चट्टित्ता नेरइएसु जाव पंचमि पुढवि गच्छति' इमे गर्भजस्थलचरोरःपरिसा इत ऊद्वृत्य नैरयिकेपु यदा गच्छन्ति तदा रत्नप्रभाक्ष्य प्रथमपृथिवीत मारभ्य यावत्पञ्चमी पृथिवीं धूमप्रभानाम्नी तावत्पर्यन्तं गच्छन्ति । 'तिरिक्खमणुस्सेस सव्वेमु' अब इनके शरीरादि द्वारों का कथन करते है-"चत्तारि सरीरगा" गर्भज उर परिसो के मौदारिक वैक्रिय तैजस और कार्मण ये चार शरीर होते हैं "ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जईभाग" अवगाहना इनकी जघन्य से एक अडगुल के असख्यातवें भाग प्रमाण होती है तथा "उक्कोसेणं जोयणसहस्सं" उत्कर्प-उत्कृष्ट से एक हजार योजन की होती है 'ठिई जहन्नेण अंतो मुहुत्त उक्कोसेणं पुषकोडी" इनकी स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से एक पूर्व कोटिकी होती है उतना द्वारमें भी जलचरों की अपेक्षा विलक्षणता ऐसी है कि ये "उध्वहित्ता नेरइएसु जाव पंचमि पुढवि ताव गच्छंति" ये स्थल नर उरःपरिसपें अपनी इस पर्याय को जब छोड़ते हैं और जब नरयिको में जाते हैं तो यह प्रथम पृथिवी से लेकर पांचवीं पृथ्वी तक के नैरयिको में जाते हैं हवे तसाना शरी२ विगेरे द्वारा प्रथन ४२वाभा माव छ. "चत्तारि सरीरगा" ગર્ભજ ઉ૫રિસર્પોને–દારિક, વૈક્રિય, તૈજસ, અને કાર્યક્ષ આ ચાર શરીર હોય छ. "ओगाहणा जहाणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग" तमानी अवगाहना अन्यथा से मांगना मसभ्यातमा मागप्रमाणुनी डाय छे. तथा "उक्कोसेणं जोयणसहस्स", थी मे २ याननी डाय छे "ठिई जहण्णेणं अंतो मुहत्तं उफ्कोसेणं पुवकोडी" भनी स्थिति धन्यथा ४ मत इतनी मने थी मे वीटीनी हाय छ. तनाद्वारमा ५ सय२ वाना २त यु मिन्ना -नुहा छ ?-"उव्यट्टित्ता नेरइपसु. जाव पंचमि पुढविं ताव गच्छति" मा स्थाय२ ७२: परिसप न्यारे पोताना આ પર્યાયને છેડે છે, અને જ્યારે નચિકેમાં જાય છે, તે તેઓ પહેલી પૃથ્વી થી લઈ ને पांयभी पृथ्वी सुधीनयिमा लय छे. ते ५छीना नामांत नथी. "तिरिक्त
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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