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जीवाभिगमसूत्र २७०
समुद्गपक्षिणां स्वरूपं दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह-से कि तं' इत्यादि, 'से कि तं समुग्ग पक्खी' अथ के ते समुद्गपक्षिण इति प्रश्न', उत्तरयति ---- 'समुग्गपक्खी एगागारा पन्नत्ता जहा पण्णवणाए' समुद्गपक्षिणः एकाकारा-एकप्रकारका एव प्रज्ञप्ताः-कथिता यथा प्रज्ञापनायाम् । तथा च प्रज्ञापनाप्रकरणम्-‘से किं तं समुग्गपक्खी ? समुग्गपक्खी एगागारा पन्नत्ता । ते णं नत्थि इहं वाहिरएम दीवसमुद्देसु भवेति से तं समुग्गपक्खी' अथ के ते समुद्गपक्षिण' ? समुद्गपक्षिण एकाकारा. प्रज्ञप्ताः, ते खलु न सन्ति इइ । बाह्यषु द्वीपसमुद्रेषु ते भवन्ति ते एते समुद्गपक्षिणो निरूपिता इति ॥
विततपक्षिणो निरूपयितुमतिदिशति-- 'एवं' इत्यादि, ‘एवं विततपक्खी जाव' एवं यथा समुद्गकपक्षिण प्रज्ञापनाप्रकरणान्निरूपिता स्तथैव विततपक्षिणोऽपि निम्पयितव्या. प्रज्ञापनासूत्रपाठस्तु इत्थं तथाहि-'से किं तं विततपक्खी ? विततपक्खी एगागारा पन्नता
समुद्गकपक्षी के सम्बन्ध में कथन इस प्रकार से है ? 'से कि तं समुग्गपक्खी ' हे भदन्त ! समुद्गकपक्षी कितने प्रकार के हैं - उत्तर में प्रभु कहते है-हे गौतम ! 'समुग्गपक्खी-एगागारा पण्णत्ता जहा पण्णवणाए' समुद्गक पक्षी प्रज्ञापना के कथनानुसार एक ही प्रकार के कहे गये है-प्रज्ञापना का वह प्रकरण इस प्रकार से है-'से कि तं संमुगगपक्खी ? समुग्गपक्खी एगागारा पन्नत्ता, ते णं नत्थि इहं वाहिरएस दीवसमुद्देन भवंति' ये समुद्गक पंक्षी एक ही प्रकार के होते हैं। और ये यहां मनुष्य क्षेत्र में नहीं होते हैं-किन्तु वाहर के द्वीपसमुद्रो में होते है। इस प्रकार से समुद्गक पक्षिका कथन कर के अंब सूत्रकार वितत पक्षियो का निरूपण करते हैं-'एवं विततपवखी जाव' जिस प्रकार से प्रज्ञापना का प्रकरण को लेकर समुद्गक पक्षिका निरूपण किया गया है-उसी प्रकार से विततपक्षियो का भी निरू । पण करलेना चाहिये० प्रज्ञापना सूत्र का पाठ इस प्रकार से हैं - "से कि तं विततपक्खी ?
હવે સમુગક પક્ષીના સ બંધમાં કથન કરવામાં આવે છે આ સંબ ધમાં ગૌતમ स्वामी प्रसुने पूछे छे ४-से किं तं समुग्गपक्खी " लगवन् समुह पक्षी टला प्रा२ना ह्या छ ? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतभस्वामी ने ४ छ । गौतम ! “समुग्गपकूखी एगागारा पण्णत्ता' जहा पण्णवणाए" समुपक्षी प्रज्ञापन सूत्रमा ४ा प्रभार
४० प्रारना डसा छ प्रज्ञापनासूत्रनु त ५४२ मा प्रभार छ “से किं तं समुग्गपक्खी समुग्गपक्खी पगागारा पण्णत्ता" ते ण णत्थि इह वाहिरपसु दीवसमुद्देसु भवंति" આ સમુદ્ગક પક્ષિયે એક જ પ્રકારના હોય છે અને તે અહિયા મનુષ્યક્ષેત્રમાં રહેતા નથી, પરંતુ બહારના દ્વીપસમુદ્રોમાં હોય છે આરીતે સમુદ્ગપક્ષિતુ કથન કરીને હવે સૂત્રકાર वितत पक्षियानु नि३५९ ४२ छ ' एवं विततपक्खि जाव"२ प्रभारी प्रज्ञापन सूत्रना પ્રકરણમાં સમુદ્ગ પક્ષોનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણે વિતત પક્ષિાનું नि३५९४ ५९ समवे. प्रज्ञापनासूत्रन त ५४ मा प्रमाणे छ.-"से कि तं वितत.