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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्रति० १. स्थलचरपरिसर्पसमूच्छिम पं. ति. जीवनिरूपणम् .२६७ प्रज्ञप्ताः कथिता इति । संप्रति प्रकरणार्थमुपसंहरन्नाह-'से तं' इत्यादि, ‘से तं भुयपरिसप्पसमुच्छिमा' ते एते भुजपरिसर्पसंमूछिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः निरूपिता इति । 'से तं थलयरा' ते एते स्थलचरजीवा भुजपरिसन्तिा निरूपिता इति ॥ अथ खेचरान्निरूपयितुमाह-'से कि तं' इत्यादि, ‘से किं तं खहयरा' अथ के ते खेचरा जीवाः इति प्रश्नः, उत्तरयति-'खहयरा चउचिहा पन्नत्ता' खेचरा जीवाश्चतुर्विधाःचतुष्प्रकारकाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा-चम्मपक्खी' चर्मपक्षिणः चर्ममयो पक्षौ विद्यते येषां ते चर्मपक्षिणः 'लोमपक्खी' लोमपक्षिणः-लोमयुक्तौ पक्षौ इति लोमपक्षौ तौ विद्यते येषां ते लोम पक्षिणः-हंस मयूरादयः । 'समुद्गकपक्खी' समुद्गकपक्षिणः समुद्गवत् संपुटवत् पक्षी येषां ते तथा गच्छतामपि पक्षौ सङ्कुचितौ एव तिष्ठतः तादृशपक्षवन्तः समुद्गपक्षिणः 'विततपक्खी' चर जीव है वे असंख्यात कहे गये है। “से तं भुयपरिसप्पसंमुच्छिमा" इस प्रकार से यह वर्णन भुजपरिसर्पसंमूछिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको का कहा गया है। इस वर्णन के समाप्त होने पर 'से तं थलयरा' यह स्थलचर चतुष्पद और स्थलचर परिसर्प इन मुख्य दो भेदों द्वारा स्थलचरो का निरूपण हो गया । जलचरों और स्थलचरो का वर्णन करके-अब सूत्रकार खेचरो का निरूपण करते है___'से किं तं खहयरा' हे भदन्त ! खेचर जीव कितने प्रकार के होते है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'खहयरा चउविहा पन्नत्ता' हे गौतम ! खेचर जीव चार प्रकार के होते हैं। 'तं जहा' जैसे- 'चम्मपक्खी ' चर्मपक्षी-जिनके पख चर्म रूप ही होते हैं वे चर्मपक्षी कहे गये हैं, 'लोम पक्खी' लोमपक्षी-जिनके पंख रोम युक्त होते हैं वे लोम पक्षी है । 'समुद्गपक्खी' उड़ते हुए भी जिन पक्षियो के दोनो पंख संकुचित रहते है ऐसे पक्षी समुद्गक पक्षी कहलाते है । 'वितत परिस५ स्थायर १ छ, त असण्यात सा छ. "से ते भुयपरिसप्पसमुच्छिमा" ઓ રીતે ઓ ભેજપેરિસર્પ સ મૂર્છાિમ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ વિકેનું વર્ણન કરેલ છે. "से ते थलयरा” माहीते सा स्थलय२ यतु०५४ भने स्थाय२ परिस५ मा भुध्य मे ભેદો દ્વારા સ્થલચરેનું નિરૂપણ સમાપ્ત થયું ? જલચરે અને સ્થલચરનું નિરૂપણ કરીને હેવે સૂત્રકારે બેચર નું નિરૂપણ કરે छ.-य२ समधी ४थन नपानी छाथी गौतम स्वामी ने छे छे ,-"से कि तं खहयरा" सगवन् मेय२-२माशाभी लव ८ प्रानी डसा छ १ मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभु गौतभस्वाभीने ४ छ -"खहयरा चउविवहा पणत्ता" है गीतम! मेयर छ। यार प्रारना हाय छे. "तं जहा" ते मी प्रमाणे छे. "चम्मपक्खी" यम ५क्षी रेनी पास यम ३५ ०१ डाय छ, त य पक्षी डेवाय छे. "लोमपक्खी सोम पक्षी मानी पांम। ३वटर पाणी डाय छे ते वामपक्षी पाय छे. "समुद्गपक्खी" यता उता ५ २ पक्षियानी मन पकि, सयात २ छ तवा पक्षी समुहू पक्षी पाय छे "विततपक्खी" भनी मने पांग मेशा
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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