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________________ जीवाभिगमसूत्रे गुलस्यासख्येयभागमुत्कर्षेण द्वादशयोजनानि एतत्प्रमाणा शरीरावगाहना भवति-द्वीन्द्रियाणामिति । 'छेवट्टसंघयणा' तेषां द्वीन्द्रियजीवानां शरीराणि सवार्तसंहननयुक्तानि मवन्तीति । 'हुंडसंठिया' तेषां द्वीन्द्रियजीवानां शरीराणि हुण्डसंस्थानसंस्थितानि भवन्तीति । हुण्डसम्थनंच अव्यवस्थिता ङ्गावयवे प्रसिद्धम् 'चत्तारि कसाया' चत्वारः कषायाः क्रोधमानमायालोभाख्या भवन्ति द्वीन्द्रिय जीवाना मिति । 'चत्तारिसन्नाओ' तेषां द्वीन्द्रियजीवानां तिम्रः सज्ञाः-आहारभयमैथुन परिग्रहाख्या भवन्ति । लेण्याद्वारे- 'तिन्नि लेस्साओ' तेषां दीन्द्रियजीवाना तिस्रो लेश्याः कृष्ण नील कापोताख्या भवन्ति । इन्द्रियद्वारे-'दो इंदिया' तेषां द्वीन्द्रियजीवानां द्वे स्पर्शनरसने इन्द्रिये भवत इति । समुद्घातद्वारे-'तओ समुग्घाया वेयणा कसायमारणंतिया' तेषां द्वीन्द्रियजीवानां त्रयः घद्धाताः वेदनाकषायमारणान्तिका भवन्तीति । सजिद्वारे-'नोसन्नी असन्नी' ते द्वीन्द्रियजीवाः नो संजिनो भवन्ति किन्तु असजिनो भवन्तीति । वेदद्वारे-'णपुंसगवेयगा' ते द्वीन्द्रियजीवा: नो स्त्री वेदकाः मङ्गल के असख्यात वे भाग प्रमाण और उत्कृष्ट से बारह योजन प्रमाण कही गई है। "देवदृसंघयणा" इनका सहनन सेवार्त्त होता है। "हुंडसंठिया" ये द्वीन्द्रियजीव हुंडकसस्थानवाले होते हैं। जिनके अंगों के अवयव ठीक नहीं होते है उनको हुडसंस्थान वाले कहा जाता है "चत्तारिकसाया" इनके क्रोध, मान, माया, और लोभ ये चार कषायें होती है । "चत्तारि सन्नाओ" इनके चार संज्ञाए, आहार, भय, मैथुन और परिग्रह-ये चार सज्ञाएँ होती हैं । लेश्याद्वार में इनके "तिन्नि लेस्साओ" तीन लेश्याएँ होती है । दो इन्द्रियाँ होती हैं । "तो समुग्याया" वेदना कषाय और मारणान्तिक ये तीन समुद्घात होते हैं । "णो सण्णी असण्णी" ये दो इन्द्रियजीव सज्ञी नहीं होते हैं किन्तु असंज्ञी होते हैं । वेदद्वार में ये-"णपुंसगवेयगा" नपुंसकवेदवाले ही होते हैं । स्त्री वेदवाले और पुरुष वेद वाले नहीं અવગાહના જઘન્યથી આંગળના અસંખ્યાત ભાગ પ્રમાણની અને ઉત્કૃષ્ઠથી બાર યોજન प्रमाणुनी ४सी छे "छेवट्ठ संघयणा" तमनु सहनन सेवात य छ "हुंडसंठिया" मा દ્વિદ્રિય જી હંડક સંસ્થાન વાળા હોય છે. જેમના શરીર અવયવે બરાબર ન હોય तेई सस्थनाणा उपाय छे. "चत्तारि कसाया" तमान अध, भान, भाया भने बाल मा यार पाये! डाय छे "चचारि सन्नाओ" तमान भाडा२, मय, भैथुन, अने परियड मा प्रधान न्या२ सहाय हाय छे. वेश्याद्वारमा तयाने "तिन्नि लेस्साओ" a वेश्यायी जाय छ में दिये डाय छे. "तो समुग्घाया" वहना, पाय, भने भारान्ति: मात्रय समुधात तान डाय छे. “णो सपणी असण्णी" मा मे द्रिय वाणा સંસી હેતા નથી પણ અસંસી હોય છે. वेदनादा२मां-"णपुंसगवेयगा' नधुस४३६ वाणा 4 य छे. श्रीवqin भने -
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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