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________________ जीव और धर्म विचरि। [२६४ बोर उप्र साहसी समस्न परापहोंको सदनकर घोर तपश्चरण और मविवल ध्यान द्वारा फर्मोके नाश करने वाले होते हैं। हे भाई! जो तू सपने फर्माका नाश करना चाहता है तो गुरुफी सेवा करना सोख गुरुकी शरण प्राप्त हो । गुरुको परम पूज्यदेव समझ, इन्द्र नरेन्द्र धरणेन्द्र और जगतके जीवोंसे पूज्य माननीय वदनीय एवं अवनीय समझ । यहुतसे समयसे गुरुओंका दर्शन नहीं था इसलिये मोक्षमार्ग भी व्यक नहीं था। अय त्रिलोकके जीवोंको पावन करनेवाले, जैन धर्मका उद्धार करनेवाले, संसारसे तारने वाले, मोक्ष मार्गको प्रदान करने वाले, अनंत सुखोंको देनेवाले, श्री १०८ श्रीदिगम्बरा. चार्य शांनिसागर महाराजका अवतार हुआ है उनका सघ जगतमें सुर्य के समान प्रकाश कर रहा है। __ अय जागो! अब जागो! जागृत हो! जागृत हो!! संसारके बहुतसे प्राणियोंने मोह रूपी गाढ अंधकारको भेदकर गुरुके संघ द्वारा सम्यक्त रत्नको प्राप्त कर लिया है। अपनी खोई हुई निधि जो मिथ्यात्व अन्धकारमें विलीन थी वह गुरु सूर्यके प्रकाशमें स्वय. मेव प्रकाशित हो गई है । इसलिये सोनेका समय नहीं है। गुरुसेवाके द्वारा मोक्ष मार्गको प्राप्त हो अपना मात्म कल्याण करो। और दुखोंका नाश कर कर्म बंधन रहित अजरामर पद मोक्ष सुखको प्राप्त हो। शिवमस्तु सवुद्धिग्स्तु कल्याणमस्तु .
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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