________________
२४] जीव और कर्म विचार । वोंमें कार्य करने आत्माके गुणोंको घात करनेकी सामथ्य नहीं रहे उनको अधाती प्रकृति कहते हैं। इन अघाति फर्म प्रकृतियोंको पुण्य पाप रूप दोनों प्रकारसे कहते हैं परन्तु धाती प्रकृतियों को पापरूप ही कहते हैं।
अशुभ पकृतियों के अनुगगके चार स्थान है नीव बाजीर विप कालकूट । भावार्थ जिमप्रकार नीबसे कांजीर विशेष विकारो होता है काजीरस पि विशेष विधारी होता है और विपसे कालहर [हालाहला एकदम विकारी है रसोप्रकार अशुभ प्रकृनियोंके अनु. माग भी चार प्रकार होते है कोई अनुभाग तो नींवके समान कम विकारी होता है पुण्य पुरुषों ने ऐसा अनुभाग विशेष दुखका प्रदान करनेवाला नहीं होता हैं। काजीरके समान शुभ प्रकृतियोषा गनुभाग मनुष्यादि पर्यायमें कुछ विशेष दुःख प्रदान करता है, तो भो आत्माके स्वरूप चितवनमें विशेष हानि नहीं पहुंचा वक्ता । ____ विष और हालाहलके समान अशुभ प्रकृतियां निगोद आदि अशुभ पर्यायमें अपना ऐसा अनुभाग कराती हैं कि जिससे आत्माके सर्वगुणों घात होजाता है।
इसी प्रकार शुभ प्रकृतियोंका अनुभाग स्थान बार प्रकार होता है । गुढ खांड शर्करा अमृत, जैसे गुड खांड और शर्करा और अमृतमें उत्तरोत्तर स्वाद और सुख है उसीप्रकार शुभ प्रकृतियोंमें उत्तरोत्तर चार मेद ऐसे होते है जो विशेष विशेष सुख पैदा करते है। -