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१२० ] जीव और कम-विचार । " जो गेगी है वह स्वय औषध सेवन करेनो रोगसे मुक्त हो सकता है। पुत्रके रोगमें कोई भी माता पिता साई आदि कुटंब कनोला साझो नहीं हो सकता और न कोई भी, साझो होता ह। कितु जिसके जैसे कार्य उसको वैसा दड ( फल ) स्वयं बेदनीय कर्म द्वारा प्राप्त होजाता है।
- पुत्र भाई धन सपनि महल घोड़ा हाथी और उत्तम भोग संप. दाकी प्राप्ति तथा शत्रु विष न्द्रिना रोग पीडा आदि शनिष्टपदार्थों की स्वयमेव प्राप्ति वेदनीय कर्मके उदयसे जायोको होती है। ___ जीवका न तो कोई मित्र है न कोई, चघु न कोई माता है न पिना हे कुट बकवीला है तथा इसी प्रकार जोवा कोई भी शत्रु नहीं हे वैरी नहीं है दुख देनेवाला है। धनादिक संपतिका नाश करनेवाला नहीं हैं किन्तु वेदनी कर्म के उदयले ऐसे.शुभा. शुभ निमित्त स्वयमेव प्राप्त हो जाते हैं, राजा रंक हो जाता है और रंक राजा होता है, निधन सात होता है और सघन निधन होता है, विष अमृत होता है, अमृत विष रूर होता है। लोतावेदनीय कर्मके उदयसे ससार बंधु हो जाता है और असाती. चेदनीय कर्मो उदयसे-वधु भो शत्रु हो जाते हैं। ।
ऐसा भी नहीं है कि जोरको सुख दुःख अनुवेदन नहीं होता है माया (भ्रम ) से ऐला दीखता है। इस प्रकारको कल्पना मिथ्या है। अशुद्ध संसारी जीवोंमें कर्मोके निमित्त सुखादुश्ख अनुवेदन करने की शक्ति उत्पन्न होजाती है और उस शक्तिके प्रभाव जीव सुख दुःखका अनुवेदन करता है। ऐसा नहीं माना