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________________ ११२] जोव और कर्म-विचार। इस प्रकार सर्वोत्कृष्ट मनःपर्ययज्ञानको भावरण मनःपर्ययज्ञानावरण कर्म करता है। वलज्ञानावरण कर्म-जोपर्म संकल' विश्वव्यापी त्रिकाल. के समस्त चरांवर.मूर्ती अमूर्तीक पदार्थ और उनकी त्रिकालमें होनेवाली लमस्त पर्यायोंको विना बिल्लीकी सहायतासे होनेवाले निरावरण अतीन्द्रियज्ञानको आवरण करता है उसको केवल. शानावरण कर्म कहते है। ' केवलज्ञान, परमात्मा, सर्वज्ञ, ईश्वर, वीतराग. निर्दोषी परम पवित्र अनंतचतुष्टय मडित ( अनंतमान, अनंतदर्शन. अनंतवीर्या और अनंतसुख) घ्याल सगुण विराजमान जन्ममरण मदि -उपाधिसे रहित घातिया कौने प्रचंड ध्वोनाग्निके द्वारा भस्मी. भूत करनेवाले परमविशुद्ध आत्माको होता है। अथवा जिस महान आत्मामें केवलज्ञान प्रगट होता है उसे ही सर्वज्ञवीतराग जीवन्मुक परमात्मा पहते है। । । .. संसारले परातीत अवस्था जिनको प्राप्त होगई है। जिनको जप, तप, ध्यान और लौट चारित्रके द्वारा जीवन्मुक्त अवस्था प्राप्त होगई है। जिन्होंने जन्म, मरण, शोक, चिन्ता, जरा, रोग 'क्षधा, तृपा, भय आशा आदि समस्त दोषोंको जीत लिया है। जिनने काम, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, छल, प्रपंच मद मोत्सर्ग भादि दोपोंको जीत लिया है इसीलिये जो परमेष्ठीपदको धारणकर परंज्योतिस्वरूप कृतकृत्य, बिमल, अविनश्वर, कर्मचक्रकेद्धंसे रहित, सर्व स्वतंत्र, सर्वशक्तिमान, अतुलबीर्य और
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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