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* जिनगुण मुकाबली *
__ ७४ जिनगुण मुक्तावली दोहा-श्रीजिनेश यतीशको, सुमिर हिये उपकार । जिनवर गुण मुक्तावली, लिखू स्वपर सुखकार ॥१॥
चौपाई। तीर्थंकर पदके गुण घणे। धन धारावत जाहि न गिणे ॥ यथाशक्ति करिये चिन्तौन । जाते होय पाप विष बौन ॥२॥ सतयुगमें प्रगटे परवीन । मानुष देह दोषकर हीन ॥ आर्यखण्ड आय अवतरे । युगल सृष्टिमें जन्म न धरे ॥३॥ क्षत्री वंश विना नहि और । जाके गर्भ जन्मको ठौर ॥ माताके रज दोष न होय । एक पूत जन्मै शुभ सोय ॥ ४ ॥ मात पिताके देह मझार । मल अरुमूत्र नहीं निर्धार ॥ गर्भ शोध देवी आदरै। स्वर्ग सुगन्धि लाय शुचि को ॥ जाके औदारिक तन माहिं । सात कुधातु मल ते नाहि । यातै परमोदारिक कहो । आदि पुराण देख सर दहो ॥ ६ ॥ केवल ज्ञान समय तन सोय । सहज निगोद विना तब होय ॥ नारि नपुसकके सम्बन्ध तीर्थंकर पद उदय न बन्ध ॥७॥ जाके संयम समय सही। आलोचन विधि वरणी नहीं ॥ मस्तक भाग विराजे केश । श्याम सचिकन सुभग सुधेश॥॥ अधिक हीन जिस अंग न होय। आधिव्याधि व्यापै नहि कोय ॥ विष शस्त्रादिक कारण पाय । आयु कर्म सित छेद न ताय ॥६॥ दोहा-इत्यादिक महिमा घणो, तीर्थधुर परमेश। दश बिधि जाके जन्म , अतिशय और विशेष ॥१०॥
चौपाई। प्रमुके अङ्ग न होब फ्सेव। नहीं निहार किया स्वयमेव ॥