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* जिनवाणी संग्रह *
जन बसे शिव अब बसत फिर बसि हैं सही । दौलत स्वरचि पर विरचि सद्गुरु सीख नित उर घर यही ॥ ११ ॥ इति ॥
'चौथा अध्याय)
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६४ फूलमाल पचीसी ।
दोहा - जैन धरम त्रेपन किया, दया धरम संयुक्त । यादों वंश विषै जये, तोन ज्ञान करि युक्त ॥१॥
भयो महोत्सव नेमिको, जूनागढ़ गिरनार । जाति चुरासिय जनमत जुरे क्षोहनी चार ॥ २ ॥
माल भई जिनराजकी, ग्रंथी इन्द्रन आय ॥
देशदेशके भव्य जन; जुरे लेनको धाय ॥ ३ ॥
छप्पय देश गौड़ गुजरात चौड़ सोरठि वीजापुर । करनाटक कशमीर मालवो अरु अमेरधुर || पानीपत होंसार और बैराट महा लघु । काशी अरु मरहट्ट मगध तिरहुत पट्टन सिंधु ॥ तह वंग चंग बंदर सहित उदधि पार लौ जुरिय सब । आए जु चोन मह चीन लग, माल भई गिरनारि जब || ४ ||
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नाराव छन्द ।
सुगन्ध पुष्प वेलि कुदि केतकी मगायकें । चमेली चप सेवती जुही गुही जु लायकें ॥ गुलाब कंज लायची सबै सुगन्ध जातिके । सुमालती महा प्रमोद लै अनेक भांतिके ॥ ५ ॥ सुवर्ण तारपाई बीच मोति लाल लाइया । सु होर पन्न नील पीत पद्म