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* जिनवाणी संग्रह .
५. विहादीकृत साग देश। आज जिनराज दरशनसे भयो आनन्द भारी हैं ॥ टेक ॥ लो ज्यों मोरधन गर्जे सुनिधि पाये भिखारी है। तथा मो मोदकी वार्ता नहीं आती उचारी है ॥२२॥ जगनके देव. सब देखे क्रोध भय लोभ मारी है। तम्हीं दोपावरण बित हों कहा उपमा तिहारी है ॥२॥ तुम्हारे दर्शविन स्वामी भई चहुंगतिमें ज्वारी है। तुम्हीं पड़ कंज नमते ही मोहनी धूल झारी है ॥२॥ तुम्हारी भक्तिसे भवजन भये सब सिन्धु पारी हैं। भक्ति मोहि दीजिये अविचल सदा या. वक विहारो है ॥४॥
५६ मानिकरुत-सोरठा। ज्ञानी पिया क्यों विसरे निज देश। कुमति कुरमिनी सोत संग राचे छाय रहे परदेश ॥ टेक ॥ अनन्तकाल परदेशनि छाये पाये बहुत कलेश । देश तुम्हारो सुपद समारो त्रिभुवन होउ नरेश ॥१॥ भ्रम मद पाय छकाय रहो घन शान रहो नहि लेश। दुखी भये विललात फिरत हो गति २ धरि दुरिभेश ॥२॥ यह संसार जानि लख सुख नहीं रंचक लेश। मानिक काल लब्धि पावस लहि सुमति हाथ उपदेश ॥ ३ ॥
पिल्ल। ___ स्वामी मुजरा हटाग लीजे ॥ टेक ॥ तुम तो बीतराग आनंद घन हमको भी अब कीजे ॥१॥ जगके देव सब रागी द्वेषी यासे निज गुण दीजे ॥२॥ आदि देव तुम समानको वेग अचल पद दोजे ।।
• ५७ हीरालाल कृत रेखता। भगवान आदिनाथ जिन सो मन मेरा लगा। आराम मुझे