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मुकावली व्रत कथा |
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मन वच काय
अश्विम सुदी ग्यारसी ||१८|| पञ्चम व्रत कीजे मन हाथ। कार्तिक यदी वारस सुखदाय || फिर छठवां उपवास सुजान । कार्तिक शुक्र तीज गुणखान ॥ २० ॥ सप्तम व्रत जिनबरने कहो । कार्तिक सुदि ग्यारसि शुभ लहो । फेर करो अष्टम व्रत लोय । मार्गसिर बहि ग्यारसि जब होय ||२१|| नवमों व्रत मार्ग सुदी तीज । ये व्रत धर्म वृक्षके बीज ॥ या विधि करौ नव वर्ष प्रमान । शुद्धता ठान ॥ २२ ॥ अब व्रत पूरण होय निदान । उद्यापन कीजे गुणवान || श्रीजिनवर अभिषेक कराय । करो माड़नो जिनगृह जाय ॥ २३ ॥ अष्ट प्रकारी पूजा करो। जन्म २ के पातक हरो यथाशकि उपकरण बनाय । श्रीजिन धाम चढ़ावो जाय ॥ २४ ॥ उद्यापन की शक्ति न होय । वो दूनो व्रत कीजे लोय || सब विधि सुन दुर्गंधा बाल | मन बच तन व्रत लीनो हाल ॥ २५ ॥ गुरु भाषित तिन त ये कियो । पूर्व भव अघ पानी दियो ॥ ता फल नारि लिङ्ग छेदियो । सौधर्म स्वर्ग देव सो भयो ॥ २६ ॥ तहां आयु पूरण कर सोय । चलत भयो मथुराको लोय ॥ श्रीधर राजा राज करन्त । ताके सुत उपजो गुणवन्त ॥ २७ ॥ नाम पद्मरथ पंडित भयो । एक दिवस बन क्रीड़ा गयो ॥ गुफा मध्य मुनिवर को देख । बन्दन कर सुन धर्म विशेष ॥ २८ ॥ तहां पूछ मुनिवरसे सोय । तुमसे अधिक प्रभा प्रभु कोय || तब मुनिवर वोले सुन बाल । वांसपूज्य दिन दीस विशाल ॥ २८ ॥ चस्पापुर राज जिनराज | तेज पुत्र प्रभु धर्म जहाज | यह सुन धर्म धिषे वित दयो । समोशरण जिन बन्दन गयो || २० || नमस्कार कर दीक्षा लई । तप कर गणधर पदवी भई ॥ अष्ट कर्म इस विधि जार
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