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मुकावली व्रत कथा |
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बार | ३३ शेष कर्म निर्वाळ तिन करे। पहुंचे मुतिपुरीमें बरे । अगम अगोचर भव जल पार । दशलक्षण व्रतके फल खार ॥ ३४ ॥ वीर जिनेश्वर कही सुजान । शीतल जिनके बाड़े माग । गौतम गणधर भाषी सार । सुनि क्षणिक आये दरबार ||३६|| जो यह व्रत नरनारो करे । ताके गृह सम्पति अनुसरे || भट्टारक श्री भूषण वीर । तिनके खेळा गुण गम्भीर ॥ ३६ ॥
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सागर सुविचार | कही कथा दशलक्षण सार || मन बचतन प्रत पाले जोह । मुक्ति बारांगणा भोगे सोइ ||३७| सम्पूर्ण ।
(६२) मुक्तावली व्रत कथा |
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दोहा - ऋषभनाथके पद नमों, भषि सरोज रवि जान । मुक्तावलि व्रतकी कथा, कहूं सुनो घर ध्यान ॥ १ ॥ चौपाई -मगध देश देशोंमें प्रधान । तामें राजगृह शुभ थान ॥ राज्य करे तहां श्रेणिकराय । धर्मवन्त सबको सुखदाय ॥ २ ॥ ता गृह नारि चेलना सती । धर्म शील पूरण गुणवती ॥ इक दिन समोशरण महावीर आयो विपुलाबल पर धीर ॥ ३ ॥ सुन नृप अत्यानन्दित भयो । कुटुम सहित बन्दनको गयो | पूजा कर बैठो सुख पाय । हाथ जोड़ कर अर्ज कराय ॥ ४ ॥ हे प्रभु मुक्कावलि - 5- व्रत कहो। यह कर कौने क्या फल लहो | तब गौतम बोले हर्षाय । सुनों कथा मुक्काबलिराय ॥ ५ ॥ याही जम्बूद्वीप मंकार | भरत क्षेत्र दक्षिण दिशि सार ॥ अङ्गदेश सोहे रमनीक | मगर बसे चम्पापुर ठोक ॥ ६ ॥ मगर मध्य इक ब्राह्मण बसे । नाम सोम शर्मा तसु लसे । ता गृह एक सुता जो मई । योवन मद