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सुगंधदशमी व्रतकथा ।
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भवसागर तरु ं ।। १५ ।। नाम लेत सब दुख मिट जाय । तुम दर्शन देखो प्रभु आय । तुम हो प्रभु देवनके देव । मैं तो करू चरण तव सेव ॥ १६ ॥ मैं आयो पूजनके काज । मेरो जनम सफल भयो आज । पूजा करके नवाऊ शीश । जगदोश ॥ १७ ॥
मुझ अपराध छमडु
'दसवाँ अध्याय
(E) सुगन्ध दशमी व्रत कथा ।
चौपाई - बर्द्धमान दो जिनराय । गुरु गौतम बंदो सुखदाय सुगन्ध दशमी व्रत की कथा । बर्द्धमान सुप्रकाशी यथा ॥ १ ॥ मगधदेश राजगृह नाम । श्रेणिक राज करे अभिराम ॥ नाम चेलना गृह पटरानि । चन्द्ररोहिणी रूप समान ॥२॥ नृप बैठो सिंहासन परे । बनमाली फल लायो हरे ।। कर प्रणाम बच नृपसे कहो । चित्त प्रमोदसे ठाड़ो रहो || २ || बर्द्धमान आये जिन स्वामि । जिन जीतो उद्यम अरि काम || इतनी सुनत नृपति उठ चलो। पुरजन युत दलबलसै मलो ||४|| समोशरण बन्दे भगवान | पूजा भक्ति धार बहुमान || नरकोठा बैठो नप नृपजाय । हाथ जोड़ पूछे शिर नाय ||५|| सुगन्ध दशमी व्रत फल भाषि । ता नरकी कहिये अब साखि ॥ गणधर कहें सुनों मग्धेश । जम्बूद्वीप विजयाई देश ॥६॥ शिव मन्दिर पुर उत्तरध्रेणी । विद्याधर प्रीत कर जैनी वती मारि अति रूप । सुरकन्तासे अधिक अनूप ॥ सागरदन्त
॥ कमला