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प्रस्तुत कृति 'जिनवरस्य नयचक्रम् जिनागम में ममागत नयो का हिन्दी भाषा मे मगल मृबोध मक्षिप्त किन्तु प्रामाग्गिक विवेचन प्रग्तृत करने का प्रथम प्रयाम है। प्रस्तुत भाग (Volume) 'जिनवरस्य नय चक्रम' का पूर्वाद्ध है।
इममे नय ज्ञान की प्राव यवता नय का मामान्य स्वरूप, नयो की प्रामागिाना नया की मन्या और निश्चय-व्यवहाग्नयो का विम्तन विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
निश्चय-व्यवहारनय यद्यपि ग्राम 7 बहनचिन विपय है, तथापि न मम्या-परिज्ञान का प्रभार भी मर्वत्र दिखाई देता है। यही पारगा? नि मभी विवादो का मृलझाने की माम य रचनेवाला नय प्राज मर्वाधिक विवाद के विषय बने हा है।
यही कारगा है कि प्रम्तृत नि म नर पनि पादन का यथेट विस्तार दिया गया है। निचय और व्यवहार नयो के भद-प्रभेदो का ग्रागम ग्रानाम में अनेकानेक युक्तियो वम उदाहरग्गा 7 मा. रम मे पर्याप्त विस्तार के माय म्पाट 7 रन । पाग किया गया है।
बीच-बीच में उठने वान प्रग्ना गाग्रा व प्राणकाग्री का यथास्थान प्रपनात्तग। मायम म माधार मादाहरगाव गनि. पा र दिया गया है ।
___ प्रागम में विविध प्रकार विविध प्रयाग पाग जान है। उन्ह भी यथासम्भव प्रातृत र उनक मन्दर्भ में उटने वाली ग्राशकामा गमाधान का भी प्रयास किया गया है । __ पक्षव्यामाह मे विरत रहकर निग्वा गई ग कृति की मर्वाधिक महन्वपूगां विणपना यह है कि हममे नयां के प्रयोग का मम्यकपन प्रात्मानुभूति का प्राप्त करने की प्रेग्गगा पद-पद पर प्राप्त हानी है। यही कारगा है कि नय विपयर ग्रन्थ हा र पी गट गानाध्यात्मिक गन्ध म मगनिधन।