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जिनवरस्य नयचक्रम
नयज्ञान की आवश्यकता
जिनागम के मर्म को समझने के लिए नयों का स्वरूप समझना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है; क्योंकि समस्त जिनागम नयों की भाषा में ही निबद्ध है। नयों को समझे बिना जिनागम का मर्म जान पाना तो बहुत दूर, उसमें प्रवेश भी संभव नहीं है।
जिनागम के अभ्यास (पठन-पाठन) में सम्पूर्ण जीवन लगा देने वाले विद्वज्जन भी नयों के सम्यक प्रयोग से अपरिचित होने के कारण जब जिनागम के मर्म तक नहीं पहुंच पाते तब सामान्यजन की तो बात ही क्या करना ?
'धवला' में कहा है :"रणत्थि गएहि विहरणं सुत्तं प्रत्थोव्व जिनवरमदम्हि ।
तो पयवादे रिपउरणा मुरिणरणो सिद्धतिया होंति ॥'
जिनेन्द्र भगवान के मत में नयवाद के बिना सूत्र और अर्थ कुछ भी नहीं कहा गया है। इसलिए जो मुनि नयवाद में निपुण होते हैं, वे सच्चे सिद्धान्त के ज्ञाता समझने चाहिए।"
'द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र' में भी कहा है :"जे रणयदिद्विविहीणा ताण ण वत्थूसहावउवलद्धि । वत्थुसहावविहूणा सम्मादिट्ठी कहं हुति ॥१८१॥
जो व्यक्ति नयदृष्टि से विहीन हैं, उन्हें वस्तुस्वरूप का सही ज्ञान नहीं हो सकता। और वस्तु के स्वरूप को नहीं जानने वाले सम्यग्दृष्टि कैसे हो सकते हैं ?" धवला पु० १, खण्ड १, भाग १, गाथा ६८[जनेन्द्र सिद्धान्तकोश भाग २, पृष्ठ ५१८]