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________________ निश्चय व्यवहार विविध प्रयोग प्रश्नोत्तर ] "जइ इच्छह उत्तरिढुं प्रण्णारणमहोर्वाह सुलीलाए । तागादु कुरणह मई रायचक्के दुरणयतिमिरमत्तण्डे ।।' यदि लीलामात्र से अज्ञानरूपी सागर को पार करने की इच्छा है तो दुर्नयरूपी अंधकार के लिए सूर्य के समान इस नयचक्र को जानने मे अपनी बुद्धि को लगाओ । उपदेश ग्रहण करने की पद्धति 'शास्त्रों में कही निश्चयपोषक उपदेश है, कही व्यवहारपोषक उपदेश है । वहाँ अपने को व्यवहार का आधिक्य हा तो निश्चयपोषक उपदेश का ग्रहण करके यथावत् प्रवर्त्ते और अपने को निश्चय का प्राधिक्य हो तो व्यवहारपोषक उपदेश का ग्रहण करके यथावत् प्रवर्त्ते । तथा पहले तो व्यवहार श्रद्धान के कारण आत्मज्ञान से भ्रष्ट हो रहा था, पश्चात् व्यवहार उपदेश ही की मुख्यता करके आत्मज्ञान का उद्यम न करे; अथवा पहले तो निश्चय श्रद्धान के कारण वैराग्य से भ्रष्ट होकर स्वच्छन्दी हो रहा था, पश्चात् निश्चय उपदेश की ही मुख्यता करके विषय कषाय का पोषण करता है । | १७७ इस प्रकार विपरीत उपदेश ग्रहण करने से बुरा ही होता है । wwwwww 1 द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र, गाथा ४१६ - मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृष्ठ २६८ wwwwww
SR No.010384
Book TitleJinavarasya Nayachakram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1982
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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