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[ जिनवरस्य नयचक्रम् गुण में द्रव्य का उपचार, गुण में पर्याय का उपचार ; पर्याय में द्रव्य का उपचार और पर्याय मे गुण का उपचार - इसप्रकार नौ प्रकार का असद्भूतव्यवहारनय का अर्थ जानना चाहिए।"
सद्भूत और असद्भूत - दोनों ही व्यवहारनय अनुपचरित और उपचरित के भेद से दो-दो प्रकार के होते है। इसप्रकार व्यवहारनय चार प्रकार का माना गया है।
वे चार प्रकार निम्नानुसार है :१ अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय २ उपचरितसद्भूतव्यवहारनय ३. अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय ४ उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय
अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय को शुद्धसद्भूतव्यवहाग्नय तथा उपचरितसद्भूतव्यवहारनय को अशुद्धमद्भूतव्यवहारनय भी कहा जाता है ।
उक्त सम्पूर्ण स्थिति को हम निम्नलिखिन चार्ट द्वारा अच्छी तरह समझ मकते है -
व्यवहारनय
मद्भूतव्यवहाग्नय
प्रसद्भूतव्यवहारनय
- --
-
उपरितसद्भूतव्यवहारनय
अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय
या शुद्धसद्भूतव्यवहारनय
या
अशुद्धसद्भूतव्यवहाग्नय
अनुपचरित
अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय उपचरित-प्रसद्भूतव्यवहारनय
__अब यहाँ व्यवहारनय के उक्त चारो भेदो के स्वरूप एव उनकी विषयवस्तु के सम्बन्ध में जिनागम के आलोक मे विस्तृत विचार अपेक्षित है। (क) निरुपाधि गुण-गुणी मे भेद को विषय करनेवाले अनुपचरितसद्भूतव्यवहारनय के स्वरूप व विषयवस्तु को स्पष्ट करनेवाले कतिपय शास्त्रीय उद्धरण इसप्रकार है :