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निश्चयनय : कुछ प्रश्नोत्तर ]
[ १०५ होना शुद्धनिश्चयनय या माक्षात् शुद्धनिश्च यनय का उदय है अर्थात् मोक्षरूप क्षायिकभाव मे युक्त आत्मद्रव्य शुद्धनिश्चयनय का विषय है।
इसी बात को संक्षेप में इसप्रकार कहा जा सकता है कि एकदेशशद्धनिश्चयनय का विषय मोक्षमार्गरूप पर्याय में परिणत प्रात्मा है शुद्धनिश्चयनय का विषय मोक्षरूप में परिणत आत्मा है तथा परमशुद्धनिश्चयनय का विषय बंध-मोक्ष से रहित शुद्धात्मा है। एकदेशशुद्धनिश्चयनय का विषय मोक्षमार्गस्वरूप होने से साधन, शुद्धनिश्चयनय का विषय मोक्षरूप होने से साध्य और परमशुद्धनिश्चयनय का विषय बंध और मोक्ष पर्याय मे भी रहित होने मे ध्येय है।
ध्यातापुरुष का अह इमी ध्येय में होता है, मोक्षमार्गरूप माधन या मोक्षरूप माध्य मे नही।
(१६) प्रश्न :- जब ध्यातापुरुप परमशुद्धनिश्चयनय के विषयभत ध्येय में ही अह स्थापित करता है तो क्या एकमात्र वही उपादेय है ?
उत्तर :- हाँ, आश्रय करने की अपेक्षा मे तो एकमात्र परमशुद्धनिश्चयनय का विषयभूत शुद्धात्मा हो उपादेय है, पर प्रगट करने की अपेक्षा शुद्धनिश्चयनय का विषय मोक्ष और एकदेशशुद्धनिश्चयनय का विषय मोक्षमार्ग भी उपादेय है। अशुद्धनिश्चयनय के विषय मोह-गगद्वेषादि हेय हैं।
(२०) प्रश्न :- मक्षेप में उक्त ऊहापोह का मार क्या है ?
उत्तर :- उक्त सम्पर्ण ऊहापोह का मार मात्र इतना है कि यदि यह भव्यजीव परमशुद्धनिश्चयनय के विषयभत निजगद्धात्मद्रव्य को जानकर, पहिचानकर उसी में जम जावे, रम जावे तो अशुद्धनिश्चयनय के विषयभत मोहादि विकागेभावों का अभाव होकर एकदेशशद्धनिश्चयनय के विषयभत मम्यग्दर्शनादिरूप एकदेश पवित्रता प्रगट हो; तथा उमीमें जमा रहे, रमा रहे तो कालान्तर में शद्धनिश्चय की विषयभत पर्ण पवित्र मोक्ष पर्याय प्रगट हो जावे और स्वभाव से त्रिकालपरमात्मस्वरूप यह आत्मा प्रगट पर्याय में भी परमात्मा बन जावे तथा अनन्तकाल तक अनन्त अतीन्द्रिय अानन्द का उपभोग करता रहे ।
यह दिन हम सबको अतिशीघ्र प्राप्त हो- इस पवित्र भावना के माथ निश्चयनय के भेद-प्रभेदों के प्रपंच (विस्तार) से विराम लेता हूँ।