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जिनवाणी होसके तो इससे क्या हुवा, भूत या भविष्य कालमें कमी सर्वज्ञता अवश्य सिद्ध हो सकती है। मीमांसकोंक पास इसका भी उत्तर है। वे कहते हैं कि, भूत या भविष्यसे यदि कोई सर्वज्ञता प्राप्त करनेवाला होगा तो वह भी हमारे ही समान ज्ञान और इन्द्रियोंका अधिकारी होगा न ? जो वस्तु आज हमारे लिये असंभव है वह भूतकालमें या भविष्यमें भी अन्य के लिये कैसे सम्भव हो सकती है ? मीमांसक यह भी कहते है कि, यदि सर्वज्ञका अर्थ पदार्थमात्रका ज्ञाता हो तो यह बात भी मानने योग्य नहीं है। यदि यह कह जाय कि वह समस्त पदार्थोको प्रत्यक्ष रूपसे जान लेता है तो धर्मादि सूक्ष्म विषय उसके ज्ञानके वाहर ही रहेंगे । तो फिर हममें और सर्वज्ञमें भेद क्या रहा ? एक और वात भी याद रखनी चाहिये कि अनुमान और आगमसे जो ज्ञान प्राप्त होता है वह अस्पष्ट होता है। सर्वज्ञको ऐसा अस्पष्ट ज्ञान नहीं हो सकता; ऐसे अस्पष्ट ज्ञानवालेको सर्वज्ञ नहीं कह सकते।
सर्वज्ञताका अर्थ क्या है ? यदि यह कहो कि पदार्थमात्रके ज्ञानको ही सर्वज्ञता कहते हैं, तो दूसरा प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि, इस प्रकारका पदार्थमात्रका ज्ञान होना किस प्रकार सम्भव है ? यदि कहा जाय कि क्रमश-धीमे धीमे-सब पदार्थोंका ज्ञान हो सकता है तो यह युक्ति भी ठहर नहीं सकती, क्यों कि भूतकालमें, वर्तमान कालमें
और भविष्य कालमें जिन पदार्थोकी उत्पत्ति हुई है, हो रही है और होगी उनकी संख्याका पार नहीं पाया जा सकता। उन्हें धीमे धीमे (क्रमशः) जाननेका यत्न किया जाय तो वह ज्ञान अपूर्ण ही रहेगा। यदि यह कहो कि सर्वज्ञको समस परायीका ज्ञान युगपत्रूपसे (एक साथ)