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जैन दृष्टिसे ईश्वर . . ईश्वर क्या है ?
साधारण मनुष्य मानते है कि ग्रहों और नक्षत्रोंसे भरपूर इस अनन्त विश्वका कोई का होना आवश्यक है। इस कर्ताकी आज्ञासे' सूर्य, चन्द्रका नियमित रूपसे उदय होता है, इसीके शासनके आधीन होकर वायु अविराम-बिना घडीभर विश्राम लिये-चलता है । इसीकी आज्ञासे वर्षा आती है, जिससे संताप शान्त होता है, पशु-पक्षी, तरु-लता, जीव-जन्तु नवजीवन प्राप्त करते है। कर्ता न हो तो यह सुखदुःखमय जगत ऐसा नित्यनूतन, विचित्र और नियमबद्ध रह ही नहीं सकता। यद्यपि दिखलाई नहीं देता तथापि लोग कहते है कि एक स्रष्टा तो होना ही चाहिये और वही ईश्वर है। केवल हिन्दू नहीं, ईसाही, मुसलमान और यहूदी भी ऐसे सृष्टिकर्ताको ईश्वर मानते है।
'पाश्चात्य दर्शनमें 'स्रष्टावाढ' 'थि-दज्म (Theism)' नामसे प्रसिद्ध है। स्रष्टावादके समर्थनमें उन लोगोंका कुछ ऐसा मत है कि, एक घड़ी लो, उसकी सुई और स्प्रिंग आदि देखो और जांच करो किये सब किस प्रकार नियमित रूपसे अपना कार्य करते है। इससे आपको विश्वास होगा कि ऐसा यत्न किसी बुद्धिमान व्यक्ति के बिना नहीं बन सकता । घडी देखकर आपको यह खयाल अवश्य आयगा कि इसका कोई कर्ता अवश्य है। अब आप असीम अनन्त आकाशकी तरफ देखिये, और विचार कीजिये की कितने ग्रह नक्षत्र अपनी