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१. भगवान् महावीरके पहेलेका पौराणिक, अर्धपौराणिक और ऐतिहासिक जैन स्रोत, जिसकी आधुनिक शैलीसे शोध करना ।
२. अंग-मगध जैसे केन्द्रस्थानसे जुदो जुदी दिशाओंमें जैन परम्पराका कैसे कैसे और कब कव फैलाव हुआ और नये नये क्षेत्रोंमें जाकर उसने क्या क्या काम किया ? अभी उन क्षेत्रोंमें जैन परम्पराका अस्तित्व किस किस रूपमें है ? वीच बीचमें चढाव-उतार कैसे कैसे और क्यों आये ? यह सव ऐतिहासिक दृष्टिसे लिखना।
३. मूर्ति विद्यामें जैन परम्पराका क्या हिस्सा है ? उसमें उसने क्या विकास किया ? इत्यादि।
१. चित्र, स्थापत्य और अन्य शिल्पका जैन परम्परामें प्रवेश कब, कैसे और कहां कहां हुआ। इसमें उसने क्या अर्पण किया ? इत्यादि।
५. देशभरमें प्रन्थोंकी रक्षाकी दृष्टि से जैन परम्पराकी क्या देन है और जैन परम्पराश्रित भाण्डारोका क्या इतिहास है ।
६. पहिलेसे आजतकके विद्यमान या लुप्त साधुओके गण, गच्छ, कुल आदिका सपरिचय वर्णन !
७. अभी तक जर्मन, फ्रेंच, अंग्रेजी, इटालियन आदि भाषाओंमें जो कुछ जैन परम्परा-संबद्ध लिखा गया हो उस सबका देशभाषामें व्यवस्थित संकलन ।
ऊपर निर्दिष्ट विषय केवल सुझावभरके लिये है। पर इतना अवश्य कर्तव्य है कि, जैन संस्थाएं अब नई दृष्टि और नई स्फूर्तिसे कार्य करने लो। सरितकुज, एलिसनीज अहमदाबाद ९, ता. ३१-१-५२ (वसतपचमी) सुखलाल