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जिनवाणी
चुलरका कहना है कि चन्द्रगुप्तके अभिषेकके समय मौर्य संवत् प्रचलित होना चाहिये । बहुत करके ई. स. पूर्व ३२० में चन्द्रगुप्त सिंहासनारूढ़ हुवा । अत एव वुलर साहब की गणना के अनुसार ३२०१५१ = १६९ ( ई. स. पूर्व ) में खारवेल राजगद्दी पर बैठा होगा । डूइलका भी यही मत है |
डोकटर फलीट " पनतनुशत... राजा... रियल मछिनेन च चयख अगिसति कतवियम न पादछति " इन शब्द का अर्थ इस प्रकार करते है:
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" मौर्य राजाओंके समयसे जो लुप्तप्रायः थे, उन सात अंगवाले जैन आगमके ६४ अध्याय और अन्य परिच्छेदोंका भी इसने पुनरुद्धार किया । " फलोटका कथन है कि इन पदोंमिं ऐसा कोई समयनिर्देश नहीं है जैसा कि भगवानलाल इन्द्रजीने लिखा है ।
११ वीं पंक्तिके अनुवादमें भगवानलाल कहते हैं कि, १३०० वर्षसे पूर्वके राजा गदभनगर में जो कर अथवा तनपढभावन लेते थे उसे खारवेलने बन्द कर दिया । फलीट इस अनुवादको ठीक नहीं मानते । वे उस वाक्यका अनुवाद इस प्रकार करते है:
“ ११३ वर्षसे जो शहर खंडहर हो गया था, जिसमें केवल प्रवासी ही डेरा डालते थे उस उद्रंग नगरका (अथवा पूर्वजोने प्रतिष्ठित किये हुवे नगरका ) उसने पुनरुद्धार किया । " विशेषमें डॉकटर फलीट यह भी कहते हैं कि, इसमें खारवेलके समयका कुछ धुंवला निर्देश मिलता है। ई. स. पूर्व २५६ में अशोकने कलिंग - विजय की इस लिये उसी समय उदंग नगर खण्डहर हो गया होना चाहिये । इसके १९३