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जिनवाणी श्यक वस्तुओंके लिये चिरस्थायी प्रबन्ध किया।"
प्रिन्सेप इस प्रकार अर्थ करके अनुमान लगाते हैं कि खारवेल किस धर्ममें श्रद्धा रखता था यह वात अनिश्चित है। “विप्रधर्म पर आसक्त " था इससे प्रकट है कि वह जैन नहीं था। पन्तु आजकलके अन्य पण्डित इसका अर्थ इस प्रकार करते हैं :
"वह २४ वर्षकी आयुमें कलिंग राजवंगके तीसरे पर्यायमें महाराज पदाभिषिक्त हुवा । राजत्वके पहिले वर्षमें उसने आंधियोंसे जीर्ण हुवे नगर, किलों और घरोंका जीर्णोद्धार कराया। कलिंग नगरमें उसने शीतल तालाव तथा उद्यानादिका पुनर्निर्माण कराया।"
(४) ___ "कारयति [1] पनतिसाहि सतसहसेहि पतियो च रजयति । दुतिये च बसे अचितयिता सातकणि पाठमदिस हयगजनररघवहुल दड पठापयति । कहनां गत य च सेनाय वितासिन मुसिकनगर ततिये पुन बसे ।" __"८३ शतसहस्र पग व्यय करके उसने प्रकृतिवर्गका रंजन किया। हाथी, घोडों, मनुष्यों और रयोंके लिये पश्चिम भागमें सूत्रधारने जो एक दूसरा घर बनाया था उसमें अन्य घरोंकी वृद्धि की, जो कंसवनमें से देखनेके लिये आते थे उनके लिये; शकनगरके अधिवासियोके ......वातायन " प्रिन्सेपका यह अर्थ वहुत छिन भिन्न है। यह समझमें नहीं आता। आज विद्वान उपरोक्त पंक्तिका अर्थ इस प्रकार करते हैं___ "राजत्वके दूसरे वर्षमें उसने गातकर्णिको अग्राह्य करके,
पश्चिमकी ओर एक बड़ी सेना भेजी और कौगांवोंकी मददसे एक । नगर पर अधिकार प्राप्त किया ।"