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दो शब्द
जैन सिद्धान्तोंके तात्त्विक विवेचन माम्बन्धी ग्रन्थ पढ़नेकी मेरी पुरानी इच्छा इस पुस्तकका अनुवाद करनेसे किसी हद तक पूरी हुई है, इसके लिये में इस पुस्तकके प्रकाशकोंका कृतज्ञ हूं।
मुझे जैनधर्मके क्रियाकाण्ड और सिद्धान्तोंमें विश्वास हो या न हो, परन्तु इस पुस्तकके पढ़नेसे में यह अवश्य समझ सका हूं कि प्राचीन जैनाचार्य केवल मुक्तिमार्गान्वेषी ही नहीं थे अपितु वे वैज्ञानिक भी थे। और जैन दर्शनमें कई सिद्धान्त ऐले हैं जो इस युगके वैज्ञानिक सिद्धान्तोंसे टक्कर ले सकते हैं। उनमें कितनी सत्यता है यह कहना तो मेरे अधिकारके वाहरकी बात है, परन्तु मुझे वे वैज्ञानिकोंके मनन करने योग्य अवश्य प्रतीत होते हैं।
जो लोग जैन नहीं हैं उन्हें जैनधर्मका मर्म समझानेमें यह पुस्तक, अवश्य सहायक होगी। हां, जो लोग धार्मिक ग्रंथ केवल खंडनमण्डनकी दृटिसे ही पढ़ते हैं- जो धार्मिक क्रियाकाण्ड और पूजन-याजनकी विधिको ही धर्मसर्वस्व समझते हैं - उन्हें शायद निराश होना पड़े।
इल्दौरी
गोपीनाथ गुप्ता