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जैन विज्ञान मतिज्ञानके दो भेद करते है । जिस मतिज्ञानका आधार वाह्य इन्द्रियां हैं वह इन्द्रियनिमित्त मतिज्ञान; और जो केवल अनिन्द्रिय है अर्थात् मनकी अपेक्षा रखता है वह अनिन्द्रियनिमित्त मतिज्ञान कहलाता है। दार्शनिक Locke ने Idea of sensation और Ideas of reflection नामक जिन दो चित्तवृत्तियोंका निरूपण किया है तथा आधुनिक दार्शनिक जिन्हे Extraspection (वहिरनुशीलन) और Introspection (अन्तरनुशीलन) द्वारा प्राप्त ज्ञान कहते है उन्हींको जैन दार्शनिक क्रमशः इन्द्रियनिमित्त मतिज्ञान तथा अनिन्द्रियनिमित्त मतिज्ञान कहते है, ऐसा कह सकते हैं।
कर्ण आदि पांच इन्द्रियोंके भेदसे इन्द्रियनिमित्त मतिज्ञान भी पांच प्रकारका है।
जिस प्रकार वर्तमान युगके वैज्ञानिकोंने Perception में विभिन्न प्रकारकी चित्तवृत्तियोंका पता लगाया है, उसी प्रकार अति प्राचीन कालमें जैन पण्डितोने मतिज्ञानमें चार प्रकारकी वृत्तियां मालम की थी। उन्होंने इन्हें अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा नामसे क्रमवद्ध किया है।
अवग्रह अवग्रह बाह्य वस्तुके सामान्य आकारको पहिचान कराता है। इस बाह्य वस्तुके स्वरूपका सुनिश्चित, सविशेष ज्ञान अवग्रहसे नहीं प्राप्त होता। यह Sensation अथवा कुछ अंशोंमेंPrimum Cognitum है।
देहा
अवग्रहग्रहीत विषय पर ईहाकी क्रिया होती है। अवग्रहीत विषयके