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चौवीशी अरनाथ-गीतम्
राग-गूजरी अर जिननायक सामि हमारउ । आठ करम अरियण बलवंते, जीते सुभट करारउ ॥१॥ अइसउ कोई अउर न होई, प्रभु सरीखउ वल धारउ । मयन भयउ जिंणि भे असरीरी,कहा करइ सुविचारउ।।२।। दोष रहित गुण पार न लहीयइ, ता की सेवा सारु । कर जोरी जिनहरय कहत है, अब सेवक कु तारउ ॥३॥
मल्लिनाथ-गीतम
राग-श्रीराग मल्लि जिणंद सदा नमीये । प्रभु के चरण कमल रसलीणे, । मधुकर ज्यु हुँइ कइ रमीयइ ॥१म.॥
निरपि वदन ससि श्री जिनवरकु,
निसिवासर सुष मइ गमीयइ । उज्जल गुण समरण चित धरीये, कबहुँ न भव सायर भमीये ॥२मा.॥
समतारस मे जउ जीलीजइ, ___राग देप थइ उपसमीयइ । तउ जिनहरण मुगति सुख लहीये, करम कठिन निज आक्रमीयइ ॥३मा.।।