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________________ 1 1 चौत्रीशी २७ } सामि अनंत तुम्हारडारे, गुण अनंत पारी । मुझ जिनहरप संभारी ज्यो, कांई मत मुकउ वीसारी ॥४वा. ॥ धर्मनाथ - गीतम् राग-वसत t भजि भजि रे मन - पनरम जिनंद, y छेड़े भव भव के निवड फंद भि. । जाकु सेवड़ सुरपति सुरनरिंद, पाम दरसण देख्यई याद | उलसे मन जइस चकोर चंद, काट दुप करम कठोर कंद ॥ १म. ॥ समकित दायक सुखनिधान, सब प्राणी कुं धड़ अभयदान | अगन्यान मह तेम उदय भान, ता प्रभु कउ धरीये रिदय ध्यान || २ || लहीये जाथ संसार पार, अविचल सुप संपति देणहार | 1 आधार नहीं ताकउ आधार, जिनहरष नमीजड़ वार वार ||३भ. ।। शान्तिनाथ - गीतम् राग - जइतसिरी प्यारु पेमकु, मेरउ साहिब हे सिरताज ॥ प्या. ॥ i
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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