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________________ २४ जिनहर्ष - ग्रन्थावली सुविधिनाथ-गीतम् राग- जइ जयंती नाथ तेरे चरण न छोरूँ । जो छुरावह तोड़ पकरि रहुँगर, जइसई बाल मा के अंचर | ना. | बहुत दिवस भए प्रभु के चरण लहे, अव त करण सेवा मन भया चंचरा । नाः। J कृपाजल सींचे दास वृद्धिवंत हुइ उलास उदकसु, सींचे जइस घड़ हड़ उदचरा ॥ १ना || सुविधि जिणंद गुणगेह न दिपावड़ छेह, सेवक निपर निज होइ जउ उछछरा | ना. | इस प्रभु पाइ कई चरण गहुं धाइ, कह उपाड़ जिनहरप हरप सुप संचरा || २ना || शीतलनाथ - गीतम् राग - माल सीतल लोयां हो जोवउ सीतलनाथ । ★ भवदुष ताप मिट सहु, थड़यड़ प्रभुजी सनाथ ॥१ सी. ॥ तुम्ह समरथ साहिब छतां हो, हुँ तर फिरूँ अनाथ 1 I सेवक सुप देता नथी, तर सीलही तुम प्राथि ॥२सी ना - Į 1
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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