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जिनहर्ष - ग्रन्थावली
सुविधिनाथ-गीतम्
राग- जइ जयंती
नाथ तेरे चरण न छोरूँ । जो छुरावह तोड़ पकरि रहुँगर,
जइसई बाल मा के अंचर | ना. |
बहुत दिवस भए प्रभु के चरण लहे,
अव त करण सेवा मन भया चंचरा । नाः।
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कृपाजल सींचे दास वृद्धिवंत हुइ उलास उदकसु,
सींचे जइस घड़ हड़ उदचरा ॥ १ना || सुविधि जिणंद गुणगेह न दिपावड़ छेह,
सेवक निपर निज होइ जउ उछछरा | ना. | इस प्रभु पाइ कई चरण गहुं धाइ,
कह उपाड़ जिनहरप हरप सुप संचरा || २ना ||
शीतलनाथ - गीतम्
राग - माल
सीतल लोयां हो जोवउ सीतलनाथ ।
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भवदुष ताप मिट सहु, थड़यड़ प्रभुजी सनाथ ॥१ सी. ॥ तुम्ह समरथ साहिब छतां हो, हुँ तर फिरूँ अनाथ
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सेवक सुप देता नथी, तर सीलही तुम प्राथि ॥२सी ना
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