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जिनहर्ष-ग्रन्थावली श्री पार्श्व जिन स्तवन
राग-भैरव भौर भयौ उठ भज रे पास,
जो चाहै तु मन सुख वास भो.। चंद किरण छवि मंद परी है,
- पूरब दिशि रवि किरण विकाश ॥१भो.।। शशि तें वियत भए हैं तारे,
निशि छोरत हैं पति अाकाश मो.। सहस किरण चिहुं दिशि पसरी है,
कमलन के वन किरण विकाश ।।२भो.॥ पंखियन ग्रास ग्रहण कुँ ऊडे,
तम चर बोलत है निज भास भो.। आलस तजि भजि भजि साहिब कुँ,
कहै जिनहरख फलै ज्यु अाश ॥३भो.।। श्री महावीर जिन स्तवन
राग-जयत श्री साहित्र मोरा हो अब तौ महिर करो,
___ आरति मेरी दूरि हरो (सा.। खानां जाद गुलाम जाणि के,
मुझ ऊपरि हित प्रीति धरौ ॥१सा.॥ तुम लोभी हुइ बैठे साहिब,
१ काम, २ प्रकाश,