SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 592
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२२ जिनहर्ष ग्रन्थावली श्रावक नी करणी छै एह, एह थी थाय भवनौ छह । आठे करम पड़े पातला, पाप तणा छुटे आमला ॥२१॥ वारू लहिये अमर विमान, अनुक्रमि लासे शिवपुर थान | कहे जिनहरख घणे सुसनेह, करणी दुख हरणी छ एह ॥२२॥ , इति श्री श्रावक करणी स्वाध्याय । सवत १७४४ वरसे वैसाख वदि २ दिने श्री क्षेमकीर्ति शाखायाँ वा० श्री श्री श्रीसोमगणि तशिष्य वा० श्रीशातिहर्ष गणि तत्शिष्य मुख्य पडित श्रीजिनहर्ष गणि तत् शिष्य पं० सभानद लिखितं ।। सुश्रावक पुण्यप्रभावक लणीया मं० किसनाजी पुत्र विमलदासजी । तत्पुत्र चिरं हरिसिंह पठनार्थम् ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy