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जिनहर्ष ग्रन्थावली श्रावक नी करणी छै एह, एह थी थाय भवनौ छह । आठे करम पड़े पातला, पाप तणा छुटे आमला ॥२१॥ वारू लहिये अमर विमान, अनुक्रमि लासे शिवपुर थान | कहे जिनहरख घणे सुसनेह, करणी दुख हरणी छ एह ॥२२॥ ,
इति श्री श्रावक करणी स्वाध्याय । सवत १७४४ वरसे वैसाख वदि २ दिने श्री क्षेमकीर्ति शाखायाँ वा० श्री श्री श्रीसोमगणि तशिष्य वा० श्रीशातिहर्ष गणि तत्शिष्य मुख्य पडित श्रीजिनहर्ष गणि तत् शिष्य पं० सभानद लिखितं ।। सुश्रावक पुण्यप्रभावक लणीया मं० किसनाजी पुत्र विमलदासजी । तत्पुत्र चिरं हरिसिंह पठनार्थम् ।